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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achar Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चम समुद्देशः अथातः संप्रवक्ष्यामि धातूपधातुमारणम् । रोगाणामनुपानं च संक्षेपात कथ्यतेऽधुना ॥१॥ अब इस प्रकरणमें धातु तथा उपधातुओंका मारण और रोगोंके अनुपानका संक्षेपसे वर्णन करेंगे ||१|| ६८ सप्तलोहसामान्यशोधनम् गोजले त्रैफले तके ह्यारनाले कुलत्थके । सप्तधातूपनिर्वापात् सप्तलोहं विशुद्धयति ।.२॥ गोमूत्र, त्रिफलाक्वाथ, तक्र, आरनाल तथा कुलत्थक क्वाथमें सात धातुओंका उपनिर्वाप करनेसे सातों धातुओंका शोधन होता है ॥२॥ ६९ शुद्धलोह-मण्डूरमारणम् शुद्धलाह सूक्ष्मचूर्ण कुमारीरसमर्दितम् । अर्कदुग्धे पुनर्मषं गजपुटेऽग्निना दहेत् ।३॥ शुद्ध लोहके सूक्ष्मचूर्णको कुमारी रसमें मर्दित करनेके अनन्तर अर्कदुग्धमें पुनः मर्दित करना चाहिए | और गजपुटमें अग्नि देना चाहिए ।।३।। एवं पुटत्रयं कुर्यात् निर्दोष म्रियते अयः । तबच्चासारमण्डूरं म्रियते तत्क्षणं सदा । ४॥ इस प्रकार तीन गजपुट देनेसे शुद्ध लोहका मारण होता है । इसी प्रकार शुद्ध मण्डूका भी तत्काल मारण होता है ॥४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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