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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३ मल्लविकारशान्तिः www.kobatirth.org ११ घृतकें साथ मरिच चूर्णका सात दिन पर्यन्त सेवन करने से शिलाजित और अमलवेतस के विकारोंकी शान्ति होती है || १५|| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सितया सह पानाच्च मेघनादरसस्य च । तस्मात् मल्लविषं हन्ति यथा निम्बू सेवनात् ॥ १६॥ जिस प्रकार निम्बूके रसका प्रसेवन करनेसे मल्लविषका नाश होता है, उसी प्रकारसे मेघनाद - चौलाइके रसका शर्कराके साथ सेवन करनेसे भी मल्लविषका नाश होता है ||१६|| गोपयः खदरोद्भूतं सितायुक्तं तथैव च । यः सेवयेद् याममेकं मल्लशान्तिः भवेत् ध्रुवम् ||१७|| २४ रसकर्पूरविकारशान्तिः शर्करायुक्त गोदुग्ध अथवा शर्करायुक्त खदिरसारका सेवन करनेसे एक याममात्र समय में मल्लविषकी शान्ति होती है ||१७|| धान्यकसितया युक्तं वारिमर्दितपानतः । रसकर्पूरशान्तिः स्यात् तथा महिषीकृतः || १८ || शर्करायुक्त धनियाको जलमें पीसकर पान करनेसे अथवा महिषी शकृत् के रसका शर्करा के साथ पान करनेसे रसकर्पूरके विकारकी शान्ति होती है ||१८|| २५ तुत्थकविकारशान्तिः जम्बीरीरसमादाय य पिबति दिनत्रयम् । तस्य तुत्थकशान्तिः स्यात् तद्वल्लाजेन वारिणा ||१९|| For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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