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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कुष्मांडरस, धमासा अथवा हंसराजके रसके सेवन से तालके विकारको शान्ति होती है ॥८॥ सौवर्णपुष्पी भूनिम्बक्वाथं पिवेत दिनत्रयम् । तालविकारशान्तिः स्यात् कामशान्तिः यथा स्त्रिया || ९ || Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिस प्रकार स्त्रीके सेवन से कामकी शान्ति होती है । उसी प्रकारसे सुवर्णपुष्पी और भूनिम्बके क्वाथका तीन दिन पर्यन्त सेवन करने से तालविकारकी शान्ति होती है ||९|| यथा रसविषं हन्यात् गोदुग्धेन च गन्धकम् । तथा सतिसर्पाक्षीरसो तालविषं पुनः । १०॥ १८ मनः शिलाविकारशान्तिः जिस प्रकार गोदुग्धके साथ गन्धकका सेवन करनेसे रस- पारदका विष नष्ट होता है, उसी प्रकारसे शर्करा युक्त सर्पाक्षी के रसका सेवन करनेसे तालका विष नष्ट होता है ॥ १० ॥ जीरकं माक्षिकयुतं सेवते यो दिनत्रयम | मनःशिलविकारश्च तद्देहान्नश्यति ध्रुवम् ||११|| मधुयुक्त जीरक चूर्णका तीन दिन पर्यन्त सेवन करनेसे मनःशिला के विकार अवश्य नष्ट होता है || ११|| (6 'तस्य विकारं कुनटी न करोति कदाचन" । इति ख ज पुस्तकयोः पाठः For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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