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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar अग्निसे धमन करनेका परिणाम-मृतधातुश्चजीवति -इस वाक्यसे धातुके पुन-- र्जीवन या पुनरुत्थान का विधान किया गया है । यह निरुत्थ या अपुनर्भव के पारम्परिक विधानसे सर्वथा विरुद्ध अथवा अश्रुतपूर्व प्रकार है । मृतधातु (शुद्धभस्म) बनने पर उसका उक्त द्रव्यके साथ धमन करने पर भी पुन:धातुभाव या जीवन नहीं होता । अत एव निरुत्थ या अपुनर्भव कहा जाता है और इसके पुनर्जीवित होनेको उत्थान कहा जाता है । यदि धातु पूर्णरूपसे मृत नहीं है तो जीवित है और अत एव औषधकर्म के लिए अयोग्य है ऐसी रसशास्त्र की परंपरा है। इस पूर्व परंपरासे सर्वथा विपरीत धातुके पुनर्जीवनका प्रदर्शन आचार्यश्री विश्रामके स्वयंका भ्रम-लेखदोष अथवा पाठ भेद का प्रमाण है। इसके अनन्तर पारद अभ्रक और हरितालके मारणके विषय में भी आचार्यश्री विश्राम ने कुछ अपना ही स्वतंत्र प्रकार प्रदर्शित किया है । पारदमें सात कंचुलिका (कंचुक)दोषका अस्तित्व वह मानते हैं और संस्कार हीन पारद सेवनसे कुष्ठादि विविध रोग तथा मृत्यु होने का भी मानते हैं । परन्तु केवल कुमारीरसके साथ मर्दन करने से इन कंचुक दोषों की निवृत्ति का वर्णन किया है । इस क्रिया मर्दन क्रियाकी आवृत्ति और कालमर्यादा आदिके प्रमाण या संख्याका निर्देश नहीं है । इस ग्रन्थमें पारदकै षड् या षोडश संस्कारमें से केवल मर्दन संस्कार और वह भी केवल कुमारीस्वरसके साथ करनेसे ही पारदशुद्धि का कथन अतिशयोक्ति पूर्ण है । तदनन्तर मारणके लिए लोह पात्र में गन्धकके साथ अर्धघटीका पर्यन्त तीव्र अग्निसे गर्दन करनेसे सूत भस्म बनती है और इससे आश्चर्यकारक लौहनिया For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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