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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २.१ भूषक पतनसे होनेवाले ग्रन्थियोंके उग्दमका वर्णन उस समय मरकी (Plague) नामक संक्रामक ग्रन्थिक ज्वरके निर्देशका संकेत विशेष उल्लेखनीय हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुश्रुतमें भी आखुके दंशसे आखुके आकारको ग्रन्थियोंकी उत्पत्तिका वर्णन है । परन्तु वहां इस ग्रन्थ में श्वेत मूषक और उसके पतनका निर्देश महत्वपूर्ण है । मत्कुण, मक्खी, मच्छर और आखु आदिको घरसे हटाने के लिए विशिष्ट प्रकारका दीपक तथा धूप तैयार करनेका निर्देश भी विशेष उल्लेखनीय है । शिर तथा शरीर परके जन्तु युका लिक्षाको हटानेके लिए लेप तथा औषध भावित वस्त्र धारण करनेका इस ग्रन्थ में जो वर्णन और विधान है वह अन्यत्र अनुपलब्ध चिकित्सा प्रकार है । गुजराती भाषा में शिरःस्थ कृमि यूकाको 'जू' इसके सफेद अण्डों 'लिक्षा' को 'लिख तथा देहस्थ लोममूल में स्वेद मलसे उत्पन्न कृमिके लिए: सवा या सावा शब्दका व्यवहार होता है । प्रस्तुत कृमिघ्न देह लेप के प्रसंग में ग्रन्थकारने यूका और लिक्षा को यथावस्थित संस्कृत शब्दोंसे ही परन्तु सावा को सावा : सावका: इन रूपो में यथावस्थित गुजराती शब्दों को ही: संस्कृत रूप देकर प्रयोग किया है । यह भी ग्रन्थकारके गुजरात प्रान्त के निवासी होना प्रमाणित करता है । का निर्देश विशेष विचारणीय है । " षट्पदी" नामक जन्तुके उदरमें जाने से जलोदर रोगकी उत्पत्ति For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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