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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achan अशुद्ध धातु-उपधातुके प्रयोगसे तथा मिथ्या अनुपानसे व्याधियोंकी उत्पत्ति देखकर उनके शमनार्थ इन्होंने विषोंकी चिकित्सा बताई है । इससे आयुर्वेदके अन्य अंग अगदतंरके भी ज्ञाता और विष चिकित्सक होना इनकी एक विशेषता है। धातु-उपधातुओं के उचित अनुपानके साथ प्रयोगको चिकित्सा तत्व के रूपमें प्रदर्शित करने के इनके तात्पर्यकी पूर्ति इनके द्वारा प्रदर्शित धातुउपधातुके शोधन मारण के प्रकारोंसे भी होती है । इस प्रकार रसशास्त्र, और औषध निर्माणके कर्म मार्ग से भी इनका परिचित होना सिद्ध होता है । सरल अनुष्टुभ छंदोमें एक एक विणके एक या दो योगोंका उल्लेख कर अपने अनुभवको संक्षेपमें प्रस्तुत करने के प्रयत्नमें भी छन्दोभंग, विभक्ति वचन-क्रिया आदिमें अशुद्धि आदिसे इस ग्रन्थकारकी संस्कृत भाषामें आवश्मक प्रभुता या प्रकाण्ड पाण्डित्य समर्थित नहीं हो सकता । हिन्दी अनुवाद इस ग्रन्थ की एक ऐसी प्रतिमें गुजराती अनुवाद भी प्राप्त हुआ है । इस मूल ग्रन्थकार ने ही यह गुजराती अनुवाद किया है यह किसी भी संकेतसे सूचित नहीं होता और किसी दूसरे लेखक का भी संकेत प्राप्त नहीं होता है । इसी गुजराती अनुवादकी सहायतासे पाठ शोधन तथा गुजराती अनुवादकालपर्यन्त के ग्रन्थकर्ता के अभिप्रायको समझने में सहायता प्राप्त हुई है । इसीकी सहायताके आधार पर ही हिन्दी अनुवाद आपके समक्ष प्रस्तुत For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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