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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra लाजारछदिषु कुटजोऽतिस्ती कुटजोऽतिसारे वृषोऽत्र पित्ते कृमी कृमिघ्नः कृमिषु कृमिघ्नम् www.kobatirth.org १३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टांगहृदय उत्तरतंत्र अ. ४०/४८ अनुपान मंजरी ५ / ३२ अष्टांगहृदय उत्तरतंत्र अ. ४०/४९ अष्टांगहृदय उत्तरतंत्र अ. ४०/४९ अनुपान मंजरी ५/३२ अष्टांगहृदय उत्तरत्रंत अ. ४०/४९ इस उक्त विवरण से यह प्रतीत होता है कि अनुपानमंजरी के लेखक आयुर्वेद आकर ग्रन्थोंसे पूर्णतः परिचित थे । इन्होंने आयुर्वेद उपचार पद्धति और इस शास्त्र के सिद्धान्तोंका कथन इन्हीं आकर ग्रन्थोंकी शब्दावली में किया है । सुश्रुतसंहितामें निर्दिष्ट अग्निकर्म और किसी भी प्रकारकी ग्रन्थिको भेदन क्रिया का उल्लेखन अनुदान मंजरीके पंचमसमुद्देशमें डंभन क्रिया के रूपमें और चतुर्थ समुद्देशमें आखुविषजन्य ग्रन्थिके विस्फोटनके रूपमें किया है । पंचम समुद्देशमें वर्णित रसशास्त्र से सम्बद्ध खनिज या धातु और उपधातु आदि द्रव्योंके शोधन - मारण एवं उनके श्रौषधके रूपमें उपयोग के विधानसे स्पष्टत: प्रतीत होता है कि अनुपानमंजरीकार आचार्य विश्रामजी रसशास्त्र के आकर एवं उपजीव्य ग्रन्थोंसे पूर्णितः परिचित तथा अवगत थे । For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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