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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achar Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याधिनिग्रह ओर अनुपानमंजरी नामक ग्रन्थोमे गुजराती शब्दों के संस्कृत स्वरूपमें प्रयोग ग्रन्थकारके गजरात प्रान्त के निवासी होनेका समर्थन करता है । इसीसे कूर्म प्रदेश गुजरात प्रान्तके अन्तर्गत कच्छ प्रदेश ओर अर्जुनपुर नामक नगर अंजार नामक नगरका होना भी समर्थित होता है । इस प्रकार आचार्यश्री विश्रामजीका गुजरात प्रान्तके निवासी होना प्रबल रूपसे समथित हो जाता है । आचार्य विश्रामजी वैदिक धर्मावलम्बी थे अनुपानमंजरीके प्रथम समुद्देशके १०, ११, १३ श्लोकोमें क्रमशः . यथा पापम् शिवार्चनें । पापम केशवदर्शनात । कष्टं देवार्चने यथा । इन तीन वाक्यांशों द्वारा भगवान शिव और विष्णुको पापनाशक परमेश्वर के रूपमे वर्णित किया गया है । ... जैन धर्मको स्वधर्म के रूपमें स्वीकार करने वाले लेखकका इस प्रकार वैदिक धर्म के मान्य ईश्वर स्वरूपांका उपमा उपमेय भावसे सामान्य जनता के लिए वर्णन करना संभवित नहीं। लेखकने स्वयम मंगलाचरणका प्रारंभ भी श्रीगणेशाय नमः । श्री धन्वंतरये नमः आदि वैदिक धर्मावलम्बियोंकी प्रणालीके अनुसार ही किया है । इन सब प्रमाणों से ग्रन्थकारका स्वयं जैन धर्मावलम्बी न होकर वैदिक धर्मावलम्बी होना ही प्रबल रूप से समर्थित है। लेखकने प्रारंभमें और मंगलाचरणकी अनन्तर प्रथम समुद्देशके पूर्व निर्दिष्ट आवश्यक स्थानों पर वैदिक धर्मावलम्बन के परिचयमें जैन धर्म के For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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