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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग जाबोल कजली में पालियोरुंरगडे टिकडीबांधे पाछेवेटिकडीनेंलो हका पात्र यांचदेकरिपतलीकरि केलिकापानउपरिढाले बैंकीपाप डीकरै तदिवेंकोनामपर्पटीरसहुवो ईरसको सेवनरती ३ रोजीनादि १५ करैत सन्निपातकी ववासीरजाय ७ योवैद्यविनोद मेलिष्यो छै नारदाकामस्साविना औरसरीरमैं कहींठिकाणेमसाहोय ती नैचर्मकीलकहेजेछे तीनैत्र्मनिकरिकेवरषारांकरिकेंइरिकीजै औरमस्साकोजननलिष्यते पाचाकोचूनो साजी सुहागो नीलो थूध यांबराबरिले पाछैनींबूकारसमेंदिन ३ भेवै पाछैमस्सा कैलगायेतौ यस्मामुकरडुरिहोय - अथवा सीसाकी गोलीनैगऊ काघृत में परिववासीरकामस्साकैदिन १० लगावैतीववासीरद विजाय ९ अथवा विष्णुकांताजडीटंक २|| काली मिरचिटंक २० मांगमासाच्या धरोजीनांघोटिपीवैतों बवासीरदेवीरह १० अथववासीरकाव्यसाध्यलक्षगलिष्यते जीववासीरमे सोजो अतीसार वमन अंगामैपीडा तिस जुर रुचि अग्निमं दगुदाकोपको हियामैसूल येलक्षणजींचवासीर वालांकेहो यसोनियेमरे ववासीर वालो इतनी पस्तकरैनहीं मलमू त्रनैरोकैनहीं स्त्रीसंगघणोकरेनहीं घोडाऊपरैचदैनहीं उकडू नहीं कर करेला बाजराउगेरै गरमवस्तषायनहीं इति बवासीर की उत्पत्तिलक्षणजननसंपूर्णम् इतिश्रीमहा राजाधिराज महाराजराजराजेंद्र श्री सर्वोप्रतापसिंहजीवि रचिते अमृतसागर नामंग्रंधेवतीसारसंग्रहणी बचा सीर की उत्पत्तिलक्षणजनननिरूपणनामस्तृतीयः स्त रंगः समाप्तः २ ५ For Private and Personal Use Only ३ प्रथमजीर्णरोगकीउत्प
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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