SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग छै येकतोवायकी १ पित्तकी र कफकी ३ सन्निपात की ४ येवायपित्त कफ है सो घणावध्याथकाकुपथ्यसूं वाग्रहणीकलाघोषाय पणि काचाही अन्नदाहाराकारैछे अथवा पक्यामन्ननेका तौभीपी उचालिकादैमलनें कदेकतोचंध्योमलजाय परकदेकपतलोही जाय योई संग्रहणी रोगको लक्षण अस्पतीसारसंग्रहणी में यो दछै प्रतीसारवालोतोपतलोमलजाय अरसंग्रहणीचा लोवंध्योम लपीडार्नेलीयांजाय। अथवायकीसंग्रहणी काउत्पत्तिसमे तलक्षगलिष्यते जोपुरषवायलवस्तको घणोसेवन करें परमि थ्याविहारमैथुनादिकघृणाकरै ती पुरुषकैवायकुपित्तहुवोधको जठ राग्निनविगडिवायकी संग्रहणीनेंकरे तींपुरसके अन्नषायोदो हरोपचे रवेंकोकंठसूकै भूषलागे तिसलागे कानांमें शब्द होय अपसवाडा में जांघा में पेडूमै काधामेंपीडाहोय परकदेविस् चिकामी होय हियोषै सरीरडूबलोहोय जीभ को स्वादजातोर है मीठा उगेरै सारारसांकाषावांकाकी इच्छारहै अरभोजनकस्योहो यसोपाचजाय तदिग्राफरोहोय परभोजनकरैतदजीवचैनपाचे अरपेटमँगोलाकी फीयाकी च्यासंकार हे अरमोडोदुषनैलीयां थोडोसोमागांसमेतिपवन सरतोथको बार बार मैजंगलजाय भ रजीकै सासषासभीहोय येजा मै लक्षणहोयतीनें वायकी संग्रह लीकहिजे १ प्रथवायकी संग्रहणीकोजननलिप्यते सूंड गिलवै नागरमोथौ प्रतीस यांनेबराबरिले पाछैयांनेजौकूट करिटंक की काटीदिन १५ देतो त्र्यांबसमेतिवायकी संग्रह वीजाय रभूषये श्रवाति तद्धि पीपलामू ल घीपाल चित्रक दव्य येसारीदरावरिले तीको चूर्णफरिदक For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy