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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ अमृतसागर तथा प्रतापसागर नरंग २५ हारकोरसमधुरहोजायछै अरोहीपाठेमधुरहोयअरचीकरगाप गानेंप्राप्तिहोयछे पाछेप्रोहीरसमलेप्रकारपक्योथकोईशरीरकासं पूर्णधातपुष्टकरैछै अरयोरसअमृतकाउपमाकोप्राप्तहोयछैअरयोआहारकोरसमंदाग्निकरिदग्ध होयतो उदर फडवोरसहो जाय अथवाषाटोहोजाय अथवायोहीरसविषकाराभाव.प्राप्ति होजाय अथवायोहीरसरोगांकासमूह शरीरमैकारदेअरयोहामा हारकोरसछैसोईशरीरमैंसारमामबलछै अरसारहीनहोयतौयो मलद्रवनामपनलोहोजायछ सौपायोनहीं अरशरीरमैंपायोजो जलसोवेंकोसारसारतोनसांहारावायशरीरमें पहुंचायदेछै अरई कानिःसारनैपेटमेंप्राप्तिकरिवेंको तकरिदेछै सोमूतहोयलिंगहर रावानीसरैडै अराहारकोकाटजोमलसोपकासयमैरहेछैसोरताकापवनकाबलकारोमलगुराहाराबारेंनीसरेछै अरवें आहारकोजोरससोनाभिकासमानपयनकाबलकोप्रेसोथकौम नुष्यकाहियामैंजायपाप्तिहोयछे अरपाछोरसपित्तकरिपच्योत दिलालरंग्योथकोलोहीहोयजायछै सोपोलोहीसर्वशरीरभैरहेछै सोओलोहीजीरकोउत्तमआधारछे अरोलोहीनीकरणोंडे पर भास्यौछै अरबलवानछे मागेडै अरयोदग्धहुवोपित्तकोसीनाई होयछे येकेकधानसवाच्यारिच्यारिदिनमैंपेदाहोयछै अरभोजन कस्पोजोअहारसोमहीनांयेकमैतीकोमनुस्यकैवार्यपेराहोय अ रस्त्रीजोयोहीभोजनकरयोजोआहारसोयहीनायेकमैस्त्रीधर्मद्वारा रजहोजायछै पाछेस्त्रीअरपरसदोन्यूमिलिमैथुनकरैतदिस्त्रीका भगमैतोशलोहीअरपुरुषकोएरवीर्ययेरेन्यू बैंसमैमिलतदि स्त्रीकागर्भस्थानमेंगर्भरहजायछे पाछेनोनमहीनेभगाराबारै For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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