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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३५ •अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग २५ देहमैं मांस अरहाड अरमेदद्यांसाशंकाबंधिवांकीनसां ९०० नवसोहै अरदोयसैदश २१० ईमैंहाउछे परकेईकच्प्राचार्याकामतसूती नसे २०० हाडलै प्ररयेकसोसात १०७ मर्मस्थान सातसे ७०० नसांचे र सर्नैववावालीधमनीनाडी २४ है मांसकीपीडी ५०० है स्त्रीयांकेमां सकीपीडी ५२० है सर्वसूंबडी नाड्यासर्व शरीरमें व्यापती १६ त्यांनेकं डराक छै अरमनुष्यांकाशरीरमें १. छिद्र है स्त्रीयांकीदेहमैनेराखि द्रवॆ येमनुस्यकासरीरमैछै सोनाममात्रसूलिष्याचे अरहुयां कोस्वरूपजथार्थमनुष्यकादेहमेंशास्त्र कैच्चनुस्वारम्हारीबुद्धिमाफिकलिखूंंडूं अथकलाको स्वरूपलि० थान रचसययांकेंदि चैजोफिल्लीछे जीमेंबालकर हे छैनानें कला कहीजे सोवाकला ७ प्रकारकीचे मांसलोहीमेदयांनी न्याकेविचैयेकेकफिली रह तत्र्प्ररफीया कैविषैयेक फिल्लीले ४ प्रांतां विचैयेक फिल्ली ५येक फिल्लीउदकैअग्निनैधारीर हे ध्येकपिल्लीवीर्यनें भारिरहेछ ७यां नैंसान कलाकहिजे प्रथसातप्रासयलि आसयनामस्थान हियांमेतौकफकोघरहियांमैनीचैामकोस्थान २ नाभिकेऊपरि बांईकानीत्र्यग्निकोस्थान ३ अग्निकैऊपरितिल नाभिकेनीचेपव नकोस्थान ४ पवनकास्थानकैनांचेपेडूमैंमलको स्थान ५ पेडूकैल गतो ही क्यूंनीचैमूत्रको स्थानतीनें वस्तिकहिजे ६, हियाकैक्यूऊपरि जीवकोअरलोहीको स्थान ७ ये सारास्त्री पुरसांकेआसय अर स्त्रीकाआसयतीनबधता येकतीगर्भकोस्थान दोयइधकास्था नस्तन र थसातधातलि० रस १ लोही २ मांस मेंद४ हाड ५ मांजी &शक ७यसातूंधातकापित्ततेजकरिपची थकी आपसमै महानायेकमैवीर्यपैदाहोयळे चौथे चौथे दनयेकेकधानहीयछै For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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