SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 513
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग २३ करें ऊपरसूययोझ्थमिश्री का संजोगकौरुचिमाफिकरातिनैपीने अरमांसउगेरैपुष्टाईचस्तषाय अरषटाईषायनहीं तो घणी स्त्रियांसूं संभोगकरै प्रश्नपुंसकपणाने इहचंद्रोदय इरिकरैछे वीर्यको धे जकरैछे इतिचंद्रोदयकरि बाकी अरावाकीविधिसंपूर्ण० अथरससिंदूर काविथिलि० ईन्हरिगोरीरसक छै प्रथमपा रानै सोधि प्ररपारानेंपरलमैंयालि हलद श्ररईट परधूमसो पर नींबूकोरस ईदिन ३षरलकरै नदिईकी सातुंकांचली हरिहोय पाछैत्रिफला कांजी चित्रक कवारकोपाठो सूंठ मिरचि पीपलि यांमैदिन ३ परलकरै पालाकारसमेंपरलकरौ दन ३ पाछे जंभीरीकारसमैदिन ३ परलकरै पाईने हांडी मेंमेलि इसरीहां डीकोमूंमोजोडै पाछैमूंदाकेषामरैचूल्हैचढावे परऊपरलीहांगी कैपीदोआलोकपडोराषैनीचे अग्निबालैतदियोयारोउपरलीहां भिकेपीदेजायलागे तदिपारानैकाटिले अथवाहिंगलूकोपारो इहींविधिसंकाढिले पाछेपारानै वांगककोडकारसमेंघरलक रै पाछैहाडी मैवापककोडकोरसपालि अरई हांडी मैलारस मेंयेव स्तरयाले सरपाक्षीजडी अरजिमीकंदकोरसच्परभांगराकी रस सांभरोलूया सीधोला परकांजी येसारीबरावस्त हांडी में घाले पाछैईमैडोलकाजंत्रकरिकपडामैंपारोबांधिपहर ४ पका यले दिपाशुद्धहोय इतिपाराशु अथवा हजार १००० नींबूकारसमें सूठि मिरचि पीपल राई सांभरोला चि कहींग येसाशनीबूकारसमैंनांषिदिन २१ ईरसमेंपारानेवर लकर नदियोपारोशुद्ध होय इतिपाराशङ्क• पाडेयोसोध्योपारोट काभरिले रसोधीत्र्यांवलासारगंधकटका ५० भरले अरदो For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy