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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० ४५९ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग अथसन्निपात कापैरकोल क्षएालि० सहतसिरीशो अथवा घृतसिरीशो हरतालसरीशो माथांकी भेजीसिरीसौ मुरदाकीहर गंधनें लीयां जीको लोहाजाय सोत्रिदोष को जाणिजे ४ प्रथरु धिरकाघरंगा जाबाकाउपवलि• रुधिरघणोंजायनादिस्त्री दुर्बलहोजाय समहोय मूर्छाहोय मदहोय तिसघणीलांगे दाह होय मलाप होय शरीरपीलोहोय तंद्राहोय वर वायका और भीरोगहोय ५ अथप्रदरकामसाध्यलक्षणलि० जोनिमाहि सूंनिरंतर रुधिरचालबोही करै रहेन हीं परति सहोय दाहहोय अरसरीरमैंजुर होय शरीरडूबलोहोय वेनें साध्यजाणिजे ६ अथशुद्धर्त्तनामस्त्रीधर्म कोलक्षएालि• जींस्त्रीकीजो निकोरुधिरमहीनांकी महीनें सुसाकारूधिरसिरीशोनीसरैची रुधिरमेंदाह नहीं पररुधिरनीसरतांपीडनहीं अरपांच ५ रा त्रितांईनीसरे परयसोंनी सरैनहीं थोडोभानीसरैनहीं नीशु स्त्रीधर्मपणजाणिजे ७ अथस्त्रीधर्मपणोंसोला १६ दि नताईरहेछ प्रथप्रदररोगकोजत नलि• संचरलूल जीरो महलौठी कमलगट्टा यांकोकाटोसहतनांषिलेतौ बायकोपेर कोरोगइरिहोय १ अथवा महलौठीक २।। मिश्रीटंक २ यांनैमि हीवांटिचावलांकापाणी सूंलेतौ पित्तकापैरकोरोगजाय रथ वा रसोतटंक २)। चौलाईकीजडकोरसटका तीमेंसहतमिला यदिन ७ पीवैतौसर्वप्रकारको पैरकोरोगजाय ३ अथवा आसा पालां कीचकलकोकाटोकरितींमेंदूधनांषिपीवैतौ घणों भी पेरको रोगजाय ४ अथवा मामकीजडनेंचावलांकापाणीवांटिवेंनदिन ३. पीवैतोपेर कोरोगजाय ५ अथवा कठूबरकीवकलकोरसती में For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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