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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५१ १९ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग. अरजामोवें काटना की जायगालोहीनीसरे पर वेंकैकफकासर्व रोगहोय २ व्यथदेशविषैसमैचरकालविषैसमैजोसपदि ककाव्यात्यांकालक्षरालि० पीपलकास्थान में दहरामै समसा नमें पंवाकनै चहुटाकैमांहि संध्याकैसमें भरणी अरमधान सत्र के मांहि अरमर्मस्थानके मांहिंजो सर्पादिकयां स्थानांमें मनुष्यादिक नफूंका ठेसोमनुस्यमरिजाय ३ अथदवकरनामसर्पजीको फाकउछीसरीसोहोयतींकाकाट्या कोलक्षणलिजीको फएपहिया सिरासो अथवाछत्रसिरीसो कमलसिरीसो अंकुश सरी सोहोय परसर्यउतावलोचाले वेनेंदकरसर्पकाहिजे ४ अथयतनामनुष्यादिकांनेंसर्पादिककाट्याहोयत्सा कोजतनकीजेनहींसोलि० अजीर्णवालानें गरमीकाविकार वालाने बालकनें वूटानें भूषाच्यादमीनें घाव चालान प्रमेहवालानें गर्भवतीस्त्रीने जीकासरीरमैंरुधिरनहींहोयजीनेयांप्रद स्यानेसर्पादिककाठैतोच साध्यजाणिजे ५ अथवा जीकामूढामें रुधिरधारपडे अरजांकीगुदामें अरइंद्री में रुधिरकी धारपडेसो भीमसाध्यढे ६ अथइसीविसको लक्षएालि० स्थावर थवा जंगमजविषछे सोघांदिनांकाप्रभावसूं औषदादिक इस विषहोयजाय वांकोगुएगजातोर हे रसजानोर है पुराणी औषदादिकविसकीषायतौ वेंकेमूर्छाश्रमवमनादिक होजाय ७ अथमूसाकाविषकोलक्षणलि• जठैमूंकाट्योहोय तीजा यगांलोही पीलोनीसरै अस्ऊंठेमंगलपडिजाय अरजुरहोय अ रुचिहोय रोमांच होय दाहहोय येलक्षणजीकाशरीर में होय न दिजा जैईनेंमूंसे काट्योछे - अथप्राणहरमूंसाका विष For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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