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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४७ अमृतसागर तथा प्रतापसागरतरंग १८ अथवा जायफलनेघसिलगावेतौछायाजाय ४ अथवा पाकका दूधमैंहलदनेंभेयलगावेतोछायाजाय ५ अथवा मसूरनेंदूधसूं पीसियतमिलायलेपकरैतोछायाजायकांतिवथै अथवा के सरि कमलकीजड अथवा केसरिरक्तचंदन लोद षस मजीठ महलोरी परजकूर गोरोचन दोन्यूंहलद लाष नागकेसरि केसूला फूलप्रियंगु पडकाअंकूर चंवेलीकापांन मोम सरस्यूं वच यांकोकाटोकरि ईकादामेंतेलपकावे मधुरीयांचसूं पाईं ईनेलकोमईनकरेती मूदांकीछाया कील तिल मस्साउगैरै मूंटा कासर्वविकारजाय ७ इतिहुंकुमाद्यतेलम् येसर्वभावप्रका समैछ इतिश्रीमन्महाराजाधिराजमहाराजराजराजें द्रश्रीसचाईप्रतापसिंहजाविरचितेअमृतसागरनामग्रंथे क्षदरोगमस्तगरोगनेत्रांकारोगकानकासर्वरोगनांकका सर्वरोगमुषकासर्वरोगहोगंकामसूदांकादाताकाजीभकातालवाकागलाकायांकाभेदसंयुक्तउत्पत्तिलक्षणजत ननिरूपणंनामअष्टादशस्तरंगःसंपूर्णम् १ अथसर्वस्था परजंगमविषमात्रकाअरयां उपज्याजोरोगत्यांकीउत्प त्तिलक्षरगजतनसिष्यते प्रथमविष दोयप्रकारकोछे स्था वर जंगमर स्थावरविषहेसोदश १० जायगारहै छकीजड मैं पत्रमैं २फलमैं पुष्पमें४ छालिमैं५ रक्षकाडूधमै र क्षकासारमे वृक्षकारसनामाद.- धातमावहरतालादिक मैं ९ कंदनामसींगीमोहरादिकमें यदिशजायगांस्थावरचिः परहै अथजंगमविषा जायगांमैरसोलि० मनुष्यादि कांकीदृष्टिमैंसर्पादिकांकासासमें२सानसगात्सरिकांकी For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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