SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७ अमृतसागरतथापनापसागरतरंग अरबहरोहोजाय अरबलजातोरहै येनामेलक्षाहोयताकौजिद्दक सन्निपातकहिये योभाकष्टसाध्यछै अथजिककोजननलिख्यते पच कत्यालीजवासो रास्ना गिलवेनारमोथो सूठिकुरकी काकडासी गा पुहकरमूल ब्राह्मी भारंगीनींबीछालि अरसो कनूर येवरा बरि इनकुंजोकूटकारटंक २॥ कोकाटोदिन देतोजिकसन्निपा तरिहोय१२ अथअभिन्याससन्निपातकारक्षगलिष्यतेनी दावेनहीं स्वासघणोंउतावलोचाले सरीरकांपे सरीरकीसर्वचेष्टा जातीरहै घांघोबोले काष्टवरहोजाय येजीमैलक्षगहोयतीकेअभि न्याससन्निपातकहजे योमहांअसाध्यछे मृत्यरुपछै १३ अथ भिन्याससन्निपातरिकरिवेकेजतनलिष्यने भाडंगा रास्ना पटोल देवदारु हल मंठि मिरचि पीपलिअरडूसो इंद्रायणकाज डब्राह्मी चिरायतो नींबकीछालि नेत्रवालो कुटकी वर पारअरलू दारुहलद कलाली गिलचे निसोतमांकाजड पुहकरमूल नायमा नागरमोथो जवासो इंद्रजय त्रिफला कचूर येसपबराबरिले इन कुंजोकूटकारटंक २॥ कोकाटोटोन्यूवषतांदिनारदेयनो अभिन्यास सन्निपातजाय १३अथसन्धिपातहरिहोवाकोअंजनलिष्यते लसए पीपलि मिरचिवच परलूकाबीज सांधोलायेसबराब रले इनइंगोमूत्रमैमिहीवारि नेत्रांमैं अंजनकरैतो सर्वसन्निपानडू रिहोय १४ अथसन्निपातडूंनाससिष्यते कालीमिरचि महुवो सांधोलूए चित्रक कायफल पीपलि येसबबराबरले इनकूमिहीं वांटिगरमपातीमैनासदीजैनौसन्निपातहरिहोय१५अथपाठौ जरकारिकरिवेंकोचिंतामणिरसलिष्यते हिंगलूकोकाट्यो पारो सोध्योगंधक अभ्रक तामेंस्वर मरिकालामिरचि पीपलि For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy