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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०३ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग मैं पीडयी होय जीकारोगांच होयच्यावै परयांषिमैंषुजालिमा वै नेत्रकरडाहोजाय परमांथोबले भरजीका नेत्र का सूशीत लपडे तदिईनेंवाताभाष्पंदनेत्रको रोगकहिजै अर्थपित्तका अभिष्यंदगरमीसंत्र्यांषिषणीपाईतीको लक्षएालि जींकानें त्रामें दाह यणोंहोय परयांषिपकिजाय मरनेत्रां सीत लताईसुहावे परजींकानेत्रमै वोसोनीसरे अरजीका नेत्रांम गरमत्र्यांसूनीसरे धरनेत्रपी होय ती पित्तकोम्प्रभिष्यंदने त्रकोरोगकहजै २ अथकफकात्र्यभिष्यंदकोलक्षणलिष्य जांकीत्र्यांषिर्नेगरमसुहावे अरनेत्रसीतलघणार हे अरजाडोजा डोबहुतऊरै ईनेंकफकोन्यभिष्यंदनेत्रकोरोग कहिजे ३ यथ रक्ताभिष्यंदनेत्ररोगकोल क्षएालि• जीकानेत्रलालहोय म रत्र्यांसूंनाबाकावर्णसिरीसापडे बरनेत्रामेंदा हहोय धरनेत्रां नेंसीतलताईसुहावे अरगरमत्र्यांपडे नदिजाणिलेलाही - काअभिष्यंदनेत्रकोरोग ४ अथवायकामधिमंथईनेंलौकिकमै घणीच्त्र्यषिडूषणी आईकनैतीको लक्षणलि आषिषणीच्यावैती में कुपथ्यकरै तदित्र्यांषिमें बकाए चाले जाणिजेग्रांषिफूटिजासि अरत्र्यषिमें इसारुलाचाले जा विजेत्र्यांषिमैंरेरणोंघालियाषिनमथैरै प्रयोशिराधरहोजा य मांथावलिउ जीवांसूसीतलप्रावै नदिजाणिजे केवाय कोअधिमंथनेत्रकोरोग ५ अथपित्तकाव्यधिमंथकोलक्ष एलिज कीत्र्यांषदूषणी आईहीय अरयोगरमवस्तषटाई उगेरैषायकुपथ्यकरै तदिवेंकीत्र्यषिभैरूलायणाचालै जाणि जेच्यांषियनकांंटिजासी परषिमैंदाहहोय परपकिन For Private and Personal Use Only १८
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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