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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . . . ३९० अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग १० जारहत्यारी नजायनोनारागुरुनीयाना हनवंतवारनीमाज्ञा गरु उपंषनाशाज्ञा मेराभक्तिगुरुकीशक्ति रोमंत्रोईश्वरोवाच मंत्रलं माथांकैवार १ सनसनैकदेतौई आधासीसीनिश्शेजाय पर ईमंत्रनेहष्णपक्षकी कैदिनशक्तिमाफिकजपिवोकरैतौरहमंत्र सिटिरहै २२ अथहूसरोमंत्र नमोप्राधासीसीहूहूकारी पह रपचारी सुषमुंदिपाटलैमारी अमुकारेसीसरहै सुषमहेश्वरकी आज्ञाफरेटस्वाहा वार २१गंजजै श्राएलीमस्तगउपरिफेरै तो आधासीसीजाय ४९ इतिमस्तगरोगकोउत्पत्तिलक्षण जतनसंपूर्णम् अथनेत्रीकांरोगांकाउत्पत्तिलक्षणजन नलिष्यते प्रथमनेत्रकोमंडछेसोदोयअदाईगांगुलप्रमारराछ अथवा आपकाअंगुगकाउदरप्रमापाछे सोनेत्रमंडलमैचोराव पाचे ९४ रोगछै सारंगधरकामत अरकेईकाचार्याकामतमूं अठतरि ७८ रोगमुष्यछे रष्टिमैंतीचारारोगछे नेत्रमेंदोयर रोगछै औरछे नेत्रकाकालीजागामें रोगछै मेनकासपेदभाग में रोगछे नेत्रकामार्गमै ९रोगछै नेवकीयांफएयानें रोग? नेत्रकासंधिमै९ रोग, सर्वनेत्रमें१७ रोगछै असैमेत्रकेविषे७८ रोगछै येचरषमैलिष्याछे शुश्रुतमें लिष्याछै वायका १.पित्तका१० कफका १३ लोहीका सन्निपानका२५ नेत्रांकैया ३२प्रेसै ७६लिष्याछे अथनेवांकारोगांकीउत्पत्तिलिष्यते नावांनैादिलेरसरीरमैंगरमहुईहोय पाछैनंदीतलाववावरी उगेरेजोजलतीमें पुरुषप्रवेशकरेतीसूअररिकादेषिया दिन कोसोबासू पसेव नेत्रांमैरजपती नेत्रांमैंधूवाजाबासू उर्दि काग्रेकिवा घणावमनकारिपाइं गरमवसकाषावा कांजी For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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