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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ ३८४ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग जाएिजेवायकी पीडा । अथपित्तकासीरोरोगको लक्षण लि• जीकोमाथोन्यग्निसिरीसोबोले श्ररसिरकाटूकहुवराजाय अरजीका नेत्रपीडहोय घणीफूटवासिरीसी अरसीतपणांकरिरात्रि में विशेषहोय तदिजाणिजेपित्तकीपीडाछे २ अथकफकासिरो रोगको लक्षणलिप्यते जाकोमस्तगकफसूंंलिप्योथकोहोय अ रभास्यौहोय अरठंदोहोय भरम्रांष्यांकैनांसिकाकैमूंदाकेजीके सोई होय परजीको शिर बले येलक्षण हो यतदिजाणिजे कफकी पीडा ३ अथसन्निपातका सिरोरोगको लक्षणलिष्यते येपाछेकस्यासौसागलक्षणजीकैहाय तदिजाणिजेसन्निपात कीपीडाडे ४ अथलोहीका सिरोरोगको लक्षणलि जीमपि त्तकालक्षरासारामिले मरहाथको स्पर्शमस्तगकेस नहीं नदि जाणिजेरक्तकापीडाढे ५ प्रथषीणपणांसूंउपज्योजोसीरो रोगत कोलक्षएालि० सरीरकोबलजातोरहै नदिमस्तगरी तोप डिजाय तदिसिर बलै अरमस्तगमैंघणीपाडा होय तदिजा विजेषीणपणांकी पीडा ६ अथकमिपणांसूंउपज्योजो सिरोरोगती कोलक्षणलि जीकोसिरघली चाडाकुंप्राप्तिहो अरणोंपुरके अरजीकानांकमैकरिलोहाच्चरराधिघणांनी सरै रवेंकोसिरनिपटघणोबलै लक्षणजीमहोय तदिमि कीपीडाजाणिजे ७ अथसूर्यावर्त्तरोगकोलक्षएाठिष्यते सूर्यकाउदे होते ही सिरके विषैमंदमंदपीडाहोय अरज्यूज्यूदिनच पीडावधे दोयपहरांतांई राष्यास भवारांमैपीडाघ होय मरदोयपहरांपीछे पीडामंदहोतीजाय ईनेंसूर्यावर्त्त कहिये ९ प्रथत्र्यनंतवान सिरोरोगकोलक्ष एलि० वायपित्त 3 For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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