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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ ३३३ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग रसधानमेंप्राप्तिहु वोकोढजाणिजे? अथरुधि मेंप्राप्तह वोजो aterialलक्षएालिष्यते जी पाजिमावे अरराधिनीसरे 'तदिजाणिजे लोही में प्राप्तहुवोकोट २ अथमांसमें प्राप्तहुवो arcisोलक्षणलिप्यते श्रकोट पुष्टपणोंहोय अरमूदोघ लोसूकै अरफुणस्यांकठोरहोय अरवापीडहोय येलसगहो पनौमांसमै प्राप्तहुवोकोटजाणिजे ३ प्रथमेंद में प्राप्तहुवोजोकोटतांकोलाएरालिष्यते हाथ कोनांसहोयजाय कुरुणी आयर चाल्पोजायनहीं सर्वांगटूटिवालागिजाय थोडीचोट सरवत्र फैलिजाय मूंढोसूकै फुलस्यांकठोर होय अरवामपीडाहो ययेजीमेल क्षणहोय तीनेंमंद में प्राप्तहुवोकोटजाणिजे ४ अथ हाडच्चरमांजी मैं प्राप्तहुवोजोकोटती कोल क्षणलिप्यते नांकगलिजाय नेत्रलालहोजाय परवांणामैकमी पडिजा य कंठको स्वरघांघो होजाय परवणामेपीडहोय नदिजाणिजे हाडमैं अरमीजीमैप्राप्तहुवोकोढलै ६ अथवीर्य मैं प्राप्तहुवो जोकोदतीकोलक्षणलिष्यते नीका मातापिताकावीर्य में कोकोदोसणहोय वांकाहुबाजोबेटाबेटीसोभाकोटीही होय ७ अथकोटकोसाध्यासाध्यलक्षरालिष्यते कोटना यकफकोहोय परत्वचालोही मांसमैंरहतोय सोनोसाध्यजा पिंजे परकोटमे दमैं जायप्राप्तहोय मरोयदोसको होय सोजाप्यजाणिजे अरकोटमांजी में जायमाप्तिहोय रमिपि जाय राहहोयन्यावै परमंदाग्निहोयजाय परनिदोसको होयसोकोटत्र्यसाध्यजाणिजे श्ररभुमेंप्राप्तिहुबोजोकोट सोभाअसाध्यजाणिजे? अथकोटकोमसाध्यलक्षणयो For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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