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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७ *मृतसागर तथा मतापसागर तरंग अथवा गिलोय इंद्रजव नींबकीछालि पटोल कुटकी सूंठ सुपे दचंदन नागरमोथो पीपलि येसबञ्यपदिबराबरिले इनकोमि हां चूर्णकरिमासाच्यारि ४ अष्टावसेसजलकैसा थिदीजैनौ, ज्वर कुंसासकूं उष्णतां [होदूषवेकूं अरुचिकों पासीकों यहचूर्णहू रिकरैछे ३ अथवा गिलोय दोन्यूंकटाली कचूर दारुहलद पीप वि रडूसो पोल नींबकीछालि चिरायतो येसर्वोषदिसम लीजै इनकूंकूटकरि छदामभरकोक्काथकरिदोन्यूबषतदिन १७ लेतपित्तकफज्वररिहोय ४ अथवा दाष किरमालाकीगिर ध एगो कुटकी नागरमोथो पीपलामूल सूंठिं पीपलि येसर्बबराबरि ले इनकूंजोकूटकरिछदामभरकोकाटो दोन्धूंबषतदिन ११ दी जैती सूल भ्रम मूर्छा रुचि छर्दिको पित्तकफज्वर को यहक्काथ दूरिकरै ५ अथवा ईरससेनीयोज्जरननकालजायछै सोलिषू छू हींगलूको काट्यौपारीक ५ गंधकसोध्योटंक ५ मिरचिकाली टंक ५ हागोसोध्योटक ५ येसर्बमिहीवांटि प्रादाकारसकीपु ट ७ दे पाछैपानांकारसकी पुढसात ७ दे पाछैगोलीरती ४ प्रमा एकीकरै गोली मानगोली १ संध्या रोजीनादिन ७ घायतो क फपित्तज्वरनिरिहीय ६ इतिपित्तकफज्वर्जतनसंपू० अथसन्निपातज्वरकी उसत्तिलक्षणजत्तनलिष्यते जोम नुष्य बहुत चीको घौषट्टो घोगरम घोतीषो घमी को घोलूषोभोजनकरै अरुविरुद्ध्वस्तषाय प्ररघोषाय मरदुष्टपाणीपी अरक्रोधवती रोगलीस्त्रीसंगकरै रडु ष्टमांस अरकचोमांसषाय परसीनना वडोदेसरिनुग्रहइनके विपरीतपतें मनुष्य कैसनिपातको रोगहोय सोयातोईकी For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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