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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ ३२५ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग पावैतौउपदंसजाय १२ अथवा जुलाबका ले वासूंउपदंसजाय १३ अथवा जोगीहरडैपईसा-भर सुपेदकाथोपईसा भर नी लोथूथोपईसा १भर यांनैमिहींवांटि पाछेपक्कानींबूसो १०० का रसमै परलकरे योरससुसायदै पाछेयांकीगोली मांसा १भरकी करै पाछैगोली १ रोजानांदिन १५ दहीकै साथिलेअरपथ्यरहैतो उपदंसनिमाछाहोय १४ अथवा नीलोथुथो भाग काथोभा ग २ सुरदासगी भाग २ सुपारी कीराषभाग २ यांनैमिहींवांटि उपदंसकी चांदी कैयांको भुरको देनौ उपदंसनिश्वैाध्योहोय १५ अथवा पारो गंधक हरताल सींडूर मैासिल यांनांबाका पात्रमैंतांबाकाघोटासूंघृतमैवांटिदिन ३ पाछेईनै लगावैतौ उपदंसजाय १६ अथवा मस्साहू रिहोवाकोजतनपाछेलिष्या छै त्याकरिकेंलिंगार्सकोजतनवैद्यकरिले इतिउपदंसरोग की उत्पत्तिलक्षणजननसंपूर्णम् येसर्वभावप्रकासमैं लिष्याछै अथसूकरोग की उत्पत्तिलक्षणजतनलिष्यते जोमुरषपुरसहोयसोविगरिविचारयांमूर्ख काकत्यांसूं लिंग नै बधायचा पट्टीकरिलेपादिकांकरि तीपुरषकैाठारा प्रकारको लिंगकै विसेसूकरोगपैदाहोयछे सोसूकरोगन्यथ रामकारको सर्पिपिका अष्टलका २ ग्रथिनं ३ कुंभीका ४ अलजी ५ मृदित ६ संमूढपिडिका ७ अवमंथ -पुकरिका९ स्पर्शहानि १० उत्तमा ११ शतपोनक १२ लकपाक १३ शोणिता र्बुद १४ अर्बुद १५ मासपाक १६ विद्रधी १७ तिलकालक १८ अथसर्षपिकाकोलक्षरालिष्यते जीकैकहींतरसूलिं गकैसिरस्यूंसिरीसी गोरी फुएएसीहोयजाय बायकफकरिकें For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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