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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२३ १६ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग कफको ३ सन्निपातको ४ अरकी ही तरेलीगेंट्री केनषदंतादिक कचोटलागिवाको ५ अथवायकाउपदंसकोलक्षणलि● लिंगेंडी के विषैगरमीकरिपीडाहोय अरऊंकीसीनांईफाटि जाय अरकुरकै अरउठेकाली फुणस्यां होयजायतो जाशि जेवाय कोउपदंस १ थपित्तकाउपसको लक्षणलि. ऊठेपुणस्यांपीली होय अरऊंठेघ पोचेपनी सरेरऊंउदाह होय अथवा पुणस्यांलालहोय येजीमैंलक्षणहोयतदिपि त्तकोउपदंसजाणिजे २ अथकफकाउयदंसकोलक्षणलिष्यते जीमैंषाघिणी होय सोजोघरणों होय वेंकुलस्यांस पेदहोय अरंजाडोजाडोवांमैश्रवें येजीमैंलक्षण होयतींमैक ककोउपदंशकहीजे ३ येसर्वलक्षणजीमै होयतींनेसन्निपा तको उपदंसकहिजै ४ अथउपदंसको असाध्यलक्षणलिप्यते जीलिंगेंडी कोमांसविषरिजाय पर मैं कमीपडिजा य अरइंडीगलीजाय अरह्मांडमवसेसच्यायर है मोउपदंसमसाध्यजाणिजे ५ अथवा उपदंसजी के वो पर बैंको जनननहींकरै परविषैकरतोजाय पर वें मैं कमीपडिजाय र वेंकीइंडिगलिजाय पुरषमरिजाय ५ प्रथलिंगार सकोलक्षएालिष्यते जी पुरसकी लिंगेंडीकै विषेधानका अंकूरसरी साऊपर होजाय कूकडा की सिसासरी साहोजाय अरलिंगेंडी कैमाहीं रवेंकीसंधि कीनसांमें पीडाघणीहोय अरवाइंडीजूवालागीजाय वेनलिंगार्स कहिजे ? अथउपदं सकोज तनलिष्यते जोकलगायऊठाकोलोहीकटाजै पर वानेंपकवानैंपकवादेनहीं इसी तरें करैनो उपदंसजाय १ For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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