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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०५ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग लूण सरस्यूं यांनैयेकठाघृतमैवांटियांकीव्रणकै धूणीदेतो एकीकृमिषाजिपीडाजाय १९ येसर्वजननभावप्रकासमें लिष्याचे प्रथमणकाभरिवाकीमल्लिंग कडवोतेलपैसा शाभर पाणीपईसा ॥ भर यांदोन्याने कांसी की थाली मेंघालि दिन १ तांईहाथसूंमसले पाछे के मांहिरालपईसा ५भर मि हवांटि में मिलावे घेरसारटका १|भर मिहींवांटिईम मिलावे कू ठटंक ५ईममहींवांटिमिलावे नीलोयूथोडंक २॥ ईमैंमिलावे वेरजोटंक | मिरचिटंक १। मिहींवांटिईमैंमिलावे पाछैयांसारां निपटमिहीवांटि हाथसूंमथै पाछैत्रणकेईनें लगावैनोव्रण ततकालभरिजाय २० अथद्यागंतुकणकहिजेतरवारि नैंआदिलेरशस्त्रत्यांकालागिवासूंउपज्याजो नात्यांका जननलिष्यते ज्यांपुरसांकेतर वारिनैत्र्यादिलेर नानाप्रका रकाधारर्थैज्यांकै त्यांकालागिवासूचांकी त्वचाफाटिजाय थवा त्वचाकीनानाप्रकार की आकृति होजाय त्यांचाहत्यांन आख्यास्याणसथियाकने पाटका सूतसूसिमावै निर्वातस्थान मैं पाछैवांटा कांकाणांकास्थाननैं गौहाकी मैदाती में पांणी घृतघालिपकावै वेंकोपाणीवलिजाय घृतमात्रआयर है इसी तरैवेंकी लोई करिसुहावतौवें ऊपरिसेककरैतौ श्रोत्राततकालच्याछ्योहोय २ अथवा कुटकी मोम हलद महलोठी कएागचकीजड अरकणगचकापांन अरकएागचकाफल प टोल चंबेलीकापांन नींबकापांन या घृतघालिपकावे पाछे पाणीवलिजाय घृतमात्रत्र्मायरहे तदिई घृतको सुहायतौसु हावतोसेककरैतौ योव्रएातनकालाख्यौहोय ३ येजतन For Private and Personal Use Only १५
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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