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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९९ अमृतसागर नथापनापसागर तरंग १५ पालोहोय प्रोत्रणस्पर्शसहनहीं अथबकासोला१६उ परवछैत्यांनैलिफ्जैछै वेविसर्परोगा पक्षायात रसिर मुडेनहीं अपतांन४ प्रमेह ५उन्मादबणमैपाडाजुर निस ९ काधिमुडेनहीं१० पासा छार्दअतीसार १३हिच की१४ सास १५ कांपएगी। यत्रणरोगकाउपर्दछै अथ ग्निदग्धकीउत्पत्तिलक्षगलिष्यतेप्रथमअग्निदग्धदोयप्र कारकोछे ऐकतोलादिकसूदग्धहुवो इसरोलोहअभिनेत्रा दिवरदहुदो २पुनःअग्निदम्पयारिप्रकारकोछै प्लष्टपहुई ग्धरसमाकदग्ध ३ अतिदग्ध४ अथपूष्टदग्धकोलक्षण लिष्यते अग्निझूदग्धहुवाछै अरक्कोवर्णऔरसोहोयजाय देनेंपुष्टकहिजै। अथडुर्दग्धकोलक्षरालिष्यतेजीमैंदाहय पोहोय अरमैपाडहोय अरफोडाहोयावे अरमोडामिटे तीनदुर्दग्धकहिजे २ अथसम्यइदग्धकोलक्षालिष्यतेजी काअंगकोतांवासरीसोवर्णहोय अरनोबूटोनहीं होय अस्जीमैं दाहअरपीडसहोय अरफैलेनहीं तीनसम्पदग्धकहिजै अ थप्रतिदग्धकोलक्षालिष्यतेजीकोत्वचाधरमांससर्वद ग्धहोजाय अरयां सरीरजुदोहोजाय अरनसांस्नायु हाड संथियेसारादग्धहोजायपरवेंमैंपीडहोय दाहाहोयजुरहो यतिसहोय मूर्छहोयजीमैंअंकूरमोडोभावैवर्णऔरसोहोजा य येजीमेलक्षणहोयताप्रतिदग्धकहिजै ४ अथदोसांसे उपज्याइसाजोसारीरबानीकाजतनलिष्यते बैजतनसर्व मेमुष्याईग्याराप्रकारकोछै सोकमसूलिषांछा परशुश्रु तचरकमेतीव्रएकाजतनसाठि प्रकारसूलिष्याछ। For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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