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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५ अमृतसागर तथा प्रतापसागरतरंग १४ रकारकल इंदजर येवरावरिले पाछेछाधिसूमिहींगॉरि ईको लेपकरैनौअर्बुदरोगजाय ४ येसजतनभावप्रकासमें लिष्याछै अथवालालअरंडकीजड छीलाकीजड यांदोन्या मैंचांवांकापागोमेवारि लेपकरैतोगलगंडजाय ५ अथ वाकिरमालाकीजड चांवलांकापांणीवांटिलेपकरेंनी कंठमालाजाय ६ अथवा संभालूकीजड जलझूवांटिलेप करेती कंठमालजाय अथवा सिरस्यूं सूकरकाविष्टा यांने बराबरिले यांनटिकरामेबालि पाछैकड़जातेलईमैमिहींवा टिवेकोलेपकरैतो कंउमालजाय- येसर्वजननवेयर हस्यमलिष्याछे इतिगलगंडकंठमालाअपचीग्रंथिअर्बु दयारोगांकी उत्पत्तिलक्षणजन्नसंपूर्णम् इतिश्रीमन्म हाराजाधिराजमहाराजराजराजेंडीसवाईप्रतापसिंह जीविरचितेअमृतसागरनामयंथेसोथरोगडहरि अंत्रदिपानामवर गलगंडकलमाला अपची ग्रंथि नामगांरि अर्बुद अध्यईद यांसारांरोगांकाभेदसंयुक्त उत्सत्तिलसगजनननिरूपांनामचतुर्दशस्तरंगः १४ अथश्तीपदरोगकीउत्पत्तिलक्षराजतनलिष्यनेजोप रषपुरागोजले तलावगैरेकोछरितु में पीवतोसीतलही जलतापरसकेयोतीपदरोगनिहायछे अथलीपद रोगकोसामान्यलक्षालिष्यतेजीकैपेअरजांघांकीसंधिमैसोजोयगोकरे पीडघणीकर वापाडजुर करे पाछैनासोईउंगसंचाले सोकम पगांताईआवेईनवैयहेसो स्लीपदकहेछे ईराचार्यहाथ कान इंद्रीके आपके For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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