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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८२ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग १४ वैययंथिनामगांटिकहेछै सोयागांठिपांच५प्रकारकाछै याय कपिनकीर कफका३ मेदका ४ नसांकी५ अथवायकीगाडि कोलक्षगलियंत प्रथमवागांडिचामडानषेचिकरियडीहोय पाछैउँमैचटकाचालै पाछै यथायणीहोय अरवाटैजाद निर्मललोहानैवहै अथपित्तकागांटिकोलक्षगलिष्यते वा गांठिसीतलहोयजांकोवर्णोरसोहोय जीमेंअल्पपीडाहोय पुजालिजीमैंघलाहोय पथरसिरीसीगांटिहोय मोडविथै यात टेजरिजाराधिनासरे लोहानहींनीसरेयेलक्षणजीमैं होयनीने कफकागांटिकहिजै ३ अथमेदकीगांटिकोलक्षगलियते जांसरीरमाफिकवागांटिवधेयटै वागांडिचीकगीहोय अरवरी होय शुजालिहोयमैपाउपणीहोय अरवाटैतदिपलसिरीसो घृतसिरीसोमेनीकलै तीनैमेदकीगांटिकहिजै ४ अथनसां कीगांटिकोलक्षालिष्यते गागांटिनिर्मलपुरसकेषेद उप जै नमानसंकोचकरे वायगांठिनउपजाने वागांडिचीयरगो लहोय अरयेमैपाडाहोय अरकोमलहोय अथवा करडीहोय पीडाभीनहींहोय परवांगांटिमर्मस्थानमैहोयनोनिश्चैहानसा ध्यछैनहीं यागांटिकष्टसाध्यछै५ बेमर्मस्थानभालिबूंछं। गाल गलो कांधा सरीरकासंथिहियो गुदाकैनिकटि पाटिये मर्मस्थानछै अथअर्बुदरोगकाउत्पत्तिलक्षणलिष्यतेजो पुरसमांसघोषातोहोय अरअन्नादिकथोडोषाय तीकैवाय पिसकफहेसो दुष्टहोयवेंकालोहाने अरमांसनें विगाडिका सगरमें अथवा सरीरकायेकदेशमें बडीगोल स्थिरजोमैथोडी पाटाजीकीजस्थोडी मोडीवथैपचैनहीं इसीमांसकागोटिहोय For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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