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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४. २८० अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग . पायतौवध कोरोगजाय १ अथवा जीरो फांऊं रूपकीवकल कूठ गौहूं बोरकापांनयाने कांजी का पाणीमैमिहीनांटि बदफैलेपकरै aौवदकोरोगजाय २ येभावप्रकाशर्मैलिष्याछै अथवा तत कालको मास्यैोजो कागलोनीं कोमांहिलोमलले नीनैं क्यूंयेकगर मकचिदकैबांधै अथवा लेपकरैनीनतकालवदयाछीहोय मोवैद्यरहस्यमै अथवा कुंदरू भेडिकाडूधमेंवांटि वेंकै लैपकरैतौवदुआडीहोय ३ इतिबद्रोगकी उत्पत्तिलक्षण जननसंपूर्णम् अथगलगंड। गंडमाला २ अपची ३ ग्रंथि ४ अर्बुद ५ यांरोगांकी उत्पत्तिलक्षणजतनलिप्यते जीपुरसकागलाकैच्यांड की सीनांईगाढो सोजोहोय लटके मोसो जोवडोहोय अथवा छोटोहोय तीनवैद्यहैसोगलगंडरोगक है है अथगलगंडको सामान्यलक्षएालिष्यते वायरकफये दोन्यूंगलामैदुष्टहोय अरंग लाकेवी चिमेदनेपकडिसनैसनेंमेद नैत्र्यंडकीसीनाईआपका चिन्हार्नेलिययाचदेछे तीनेगलगंडक हिजै सोगलगंडतीनिप्रकारको बायको १ कफको २ मेदको ३ अथवायकागलगंडकोलक्षगलिष्यते जोंमें पीडाघणीही यमरगलाकीनसांकालीहोय अथवा लालहोय मरवांमैक ठोरपणोंहोय परमोडीवधे परपचेनहीं अरसूंदोविरसहो जाय र बैंकोतालको अरगलो लिप्योसोदा सेकफकरिकैं येजों मैंलक्षण होयतीनें वायकोगलगंडकहिजे १ अथकफकागल गंडकोलक्षएालिष्यते गलाकैत्र्यांडकीसीनाई लटकनीसोई स्थिररहे अरभारीरहै पर वेंमेषुजातिघणीच्यावे अरवासील होय अरमोडीवधे अरमोडी पके अर वेंमेंपीडकमहोय रवेंको For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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