SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७७ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग डांनै भ्रदोन्यांच्यांडाकाभंडारानें वधाय देवैखै तीनेवैद्यडवृद्धि कंहै? अथवायकाअंडवृद्धिकोल क्षएालिष्यते वायक रिकैंभरी सीजोलुहारकीधमणि नीकोसोस्पर्शहोप अरलूषी होय रविरिकारणहीं वें में पीडाहोय तीनैवायकी अंडवृद्धिक हिजै १ अथपित्तकीडद्धिकोल क्षणलिप्यते पस्योजोगू लरिकोफल तीसरीसोसोजोहोय पर वेंदाहहोय तीनैपित्त कोअंडवृद्धिकहिजे २ अथकफकीडद्धिकोलक्षणलिष्य मोअंडटडिसीतलहोय अरभारीहोय अरचीकरणी होय मरजी मैं जालिहोय पर करडी होय पर बेमैपीडाथोडीहोय तदिजा विजेयाअंडरडिकफकी ३ अथलोहीका दुष्टपणांकी डबृद्धिकोलक्षणलिष्यते कालीहोय फोडाजी मैं घणाहोय अरपित्तकीदृद्धिकाजीमैंलक्षणमिले तीनैरक्तदुष्टकी अंडर डिकहिजै ४ अथमेदकीअंडवृद्धिकोलक्षएालिप्यते सर्व कफकासाजीमैंलक्षएाहोय अरकोमलजोताङको फलतींस सोहोय तीनेंमेद्कोअंडवृद्धिकहिजै पथमूत्रकारोकि वाकाअंडवृद्धिकोलक्षणलिष्यते जोपुरसमूत्रकारोगनैं रोकै परमारगनैचालेती के मसकसरीसोकोमलत्र्यांडबधै पर वेंमें पीडाहोय अरमूत्रकष्टसंतरे तीमूतकारोकिया कोडकिहिजे ६ अथमंत्रदृद्धिकी उत्पत्तिलक्षणलि• ज्यांवस्तांसंवाय हैसोको पकुंप्राप्तिहोय इसातो भोजनकरे रसीतलजलमैंतिरै जुद्ध मैं ऊंचो रहतीं भारका उठावासूं मा र्गचाविवासूं अंगांऊंश्रेठीऊंटी करि वासूं ओरकोईभयंकर ब स्तकाकरियां यांकारणांसंपवनहैसो सांकुचितहोय सरीर For Private and Personal Use Only १४
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy