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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२ १४ अमृतसागर नयाँ प्रतापसागर तरंग पावासूं अरववासीरघएवढ्यौरवो पेटमै छै श्ररजुलाबले नहीं भरचोटलागिवासूं काचागर्भकापडिवासूं जुलाबलेरपां चकर्मकरैछे त्यांमैं कुपथ्यकाकरि वासूं अतनीवस्तां वांडूब नाच्यादम्यां कैसोजाकोरोगहोय है सोच्यो सोजाकोरोगनव९प्र कारको वायको १ पित्तको २ कफको ३ वातपित्तको ४ वातक फको ५ कफपित्तको ६ सन्निपातको ७ चोटलागिवाको वि सको ९ अथसोजाको पूर्वरूपलिष्यते सरीरमैंवाय होय अरनसांनेपसारतांपीडाणी होय सरसरीरभारयोरहै येजी मैंलक्षण होयतदिजाणिजेईकै सोजाकोआजार होसी १ म थसोजाको सामान्यलक्षगलिष्यते आपकाकारांकरि केंदुष्टहबोजोनाय सोरक्तपित्तकफकरिकै वेंकीगतिरुकजाय नादिरक्तपित्तहैसोसरीर की जोवाहरलीनसां त्यांप्रतिकफनें प्राप्तिकर सरीरकी जो त्वचामांसयांकासमूहनेंघ फुलाय देखेँ ईकारणईनैसोजाकोरोगक है छै सोवहसोजो इतनीवात नॅकरें सरीर भारयोकरिदे मनमेंत्र्यावैजैठेईहोजाय वेंसी जामैंगरमपणोंहोजाय नसांनी कलित्र्याचे रोमांच होयत्र्या सरीरको वर्णऔरसोहोजाय मेलक्षण होयतदिसोजाको रोग कहिजे' अथवायकासोजाकोलक्षएलिष्यते सरीरकान्व चाहैसो कठोरहोजाय लालहोजाय अथवा कालीहो जाय थवा सोईहोयजाय तदिवेंकैसेकादिककरे नदियाछी होजाय अरदिनमै घणी सोई होजाय येजीमेंलक्षणहोय तीनेंवायका सोईकहिजे? प्रथपित्तकीसोईकोलक्षणलिप्यते सरीर कीत्वचा कोमलहोय जाक्पगंधनैलीयांहोय पीलीहोय लला For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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