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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६३ १३. अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग करिवात्र्यकारणणसं पुरसकै कार्श्यरोग होय अथक्षीणप लांकारोगको लक्षणलिप्यते कुलाउदर कांधी येसूकिजाय नसांनी कलिया हाडचामडीसरीरकीत्र्वसेस प्रायर है सरीर डूबलीहोजाय लक्षण होयती पीएापणांकोरोगमनुष्यकैजाणि जे९ श्रथमनुष्पप्रसँतषी रापडिगयोहोयती कोइननारो गहोय सोलिषूं फीयोहोय वासीहोय क्षयरोगहोय गोला कोरोगहोय ववासीर होय उदरकोरोगहोय संग्रहणी आफ रार्ने प्रादिलेर और रोगहोय पर केईपुरषदीषनकानो बला क्यूंजयां कैसे दको भागतो सरीरमै थोडो परवीर्य कोहिसोसेरीरमैं घोर अरोमैथुनघणोंकरे रवेंकोबंधेजघोर है पर स्त्रीयांकोगर्भ राषिदे अरकेईकदीपनकातोसरीरकापुष्ट अ रथलहान परमैथुनादिकमैं समर्थनहीं तीन षी एकहीजे क्यूं बैंकासरीरमैं मेदको भागतोयणो परशुक्रकोविभाग थोडे। जींसू पुरषषीहीं जाणिजे १० अथकृसनामषीणपणांकारो गकोजतनलिष्यते जीतनीबलकारीयोषदिछें अरजीतनी बंधेजकी ओषदि परजितनां पुष्टकारी मृतदूधमांसनेंत्र्यादि लेरपुष्टाईकाछे त्यांसूंषीणपरिहोयछै परयांकाजतन पुष्टाईकाग्रंथकासमाप्तिमैलिषस्यां ११ अथप्रसाध्यक्षीणप गांका रोगको लक्षएालिप्यते जिहपुरसकैस्वतः स्वभावसेती freeहोय अग्निमंदहोय अरजीहपुरकै स्वतः स्वभावसेती हीसदाही वें कोसरीरनिर्बलहोय नीकोजनननहीं ये सर्वजननभावप्रकासमेलिष्याछें अथकानामषाण पणांकारोगकी उत्पत्तिलक्षणजननसंपूरणम् ॥ છે. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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