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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४५ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग. १२ संप्राप्तीनामजनमसोलिष्यते कफहेसोपेडूमेंप्राप्तडबोजो मेदभरमांस अरसरीरकोजलतीनैदूषितकार अरकफकाम मेहकरैछै श्रेसेंहीपित्तहैसो गरमदांसुपितहसोथको पे डूमेंप्राप्तहुनोजोमेरअरमांस अरसरासकोजलत्यांने दूषितकार अरपित्तकाप्रमेह करेंछै अलैहींगपहेसोग्रापकिअपेक्षाक परआपसांक्षीजोकफपित्ततीनेशीराहुवांथकां पडूमैंप्राप्तह बोजोमांसकोनहतानमांजाने अरसरकाजलने पेडूका नसांकानूंदामेंप्राप्तिकरि वायकाप्रमेहनेंकरैछ सोकफकाता दस प्रमेहसाध्यछ क्यूंदोसदुष्पाकासंमानजननथकीअरपि तकाप्रमेहसोजाप्यछे जाप्पकाईजतनकियेदव्यारहै क्यूंयां काविसमजननछै क्यूंदोषडष्यांकाविसमपएकाथकी ठेदोष इषितछे अरडुष्परसमासादिकछे सानलमधुरादिकपित्तहारी ट्रव्यछै अरवायकाप्रमेहच्यारि ४ सोअसाध्यछै पैजायनहीं यू. मीजीनेंदिलेरवैगंभीरधातुछ सोसर्वसरारव्यापीछे परस शरकोविनासकारीछैईकारा बायकाप्रमेहअसाध्यडै १. अथप्रमेहवीस२०प्रकारकाछेत्यांकानामलिष्यते उदकप मेह । इक्षुप्रमहर सांदपमेह ३ सुराप्रमेह ४पिष्टप्रमेह ५सुक्तप मेह सिकनाप्रमेह ७ सातप्रमेह-शनैप्रमेह ९लालीप्रमेहा. येदोसतोकफकाप्रमेहछै अरक्षारपमहानीलप्रमेह र काल प्रमेह ३ हरिद्रापमेह४ मंजिष्टपमेह ५रक्तपमेह यछह ६ पिनकाप्रमेहछे अरपसापमहानीलप्रमेह २ कालप्रमेह ३ हनीप्रमह ४ यवायकाजालिजे येवीस०प्रमेह वाग्भटस शुनचरकभावप्रकासादिककामनमूंछै अरआत्रेयजीका For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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