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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३७ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग १२ अंथअशलाकोलक्षगलिष्यते पेडूमेंग्राफरोहोय गुदाकोप पनचलेंनहीं गुदामेंपवनकीगांठिभागसिरासीहोजाय उंठे पीड घशीहोय अरोपवनमलमूत्र रोकिदेयेजीमेंलक्षणहोयनी नेअशलारोगकहिजे२ अथवातपतिकोलक्षगलिष्यने। जोपुरषमूत्रकारोगनैरोकैतीकै पवनहेसोपेड़मेंजायमूतकानसा काट्दानैरोकिदे मंतउतरि वादेनहीं पेडूमेंअरकूषिमैपीडाकरें नेवातपस्तिरोगकहिजे योरोगकष्टकारीछे ३ अथमूत्रानी नरोगकोलक्षालिष्यते मूतनेघणीवाररोके पर वेगदेरमू करेनहीं नदिपुरसकेमूलमंदतरै ईनेमूबानीनरोगकहिजे ४ अथमूरजठररोगकोलक्षरालिप्यतेजोपुरषमृत्रकाये गनेरोके तीकैगुदाकोअपानपवनहेसोउदरपवन भरेना मिनीचेाफरोकरे घणीपीडकरैतीनेमूत्रजठररोगकहिजे ५ अथगूत्रोत्संगकोतक्षरालिप्यते पेडूकमोहि अथवा सिं गकीनसांमैं आयोजोमूततीनेंकरेनहीं तदिवेपुरसकैमूत्रद्वारा थोडोथोडोलोहीमूतेपाडानेलियां अथवा नहींपीरा.लीयांई नेमूत्रोत्संगरोगकहिजे अथमूत्रक्षयकोलक्षगलिष्यते. जीपुरसकेषेदकारकेसरीरलूषोपडिजायनीकापेमेरहतो, जोवायपित्तकफसोमूत्रकानास करेंछे पीडाबरदाहसंयुक्त नीनेमूत्रक्षयरोगकहिजे७ अथमूत्रग्रंथिरोगकोलक्षगलि. पेडूकैमाहिगोल अरस्थिर अरछोटी प्रांवलाप्रमाणनिपटगांठी बायकागांठि अकस्मातरपजियावतीनेमूत्रग्रंथिरोगकहिजेअथमूत्रशुक्ररोगकोलक्षपालिष्यते मूनकोवेगलागिरत्योहो य अरमैथुनकरिवानेस्वाकनँजाय तदिवेंकैवायहेसोशुकने For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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