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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ २११ मृतसागर तथा प्रताप सागर तरंग धांसू रोके अथवासोचकाच्यांसूने रोकैती वेकें मांथो भाग्यो होय रनेत्रकाआजारहोय ५ अथछीककारोकिवा का उदावर्त्तको लक्षणलिष्यते कांधीमुडैनहीं माथामैसूलचालै आधासीसीहो य सर्वइंद्री दुर्बल होजाय ६ अथडकारकारोकिचाकाउदाव कोलक्षणलिष्यते कंठरमृटोभोजनसंभारखोदीर्षे मोहनिप टघलौदीषे सरीरमें विथाहोय पवनसरैनहीं और वाय कापलावि कारहोय ७ मथछर्दिकारोकिवाकाउदावर्त्तकोलक्षणलि ष्यने सरीर में बुजालिहोंय दाफडहोय अरुचि होय मूढाऊपरिखा यपडिजाय सोजोहोय पांडुरोगहोय जुरहोय कोटहोय हियो विसर्परोगहोय - अथशुक्रकारोकिवा काउदावर्त्तकोलक्षएालिप्यते पेडूमैं गुदा मैं पोतामें इंद्री में पीडहोय परसोजोहोय मूत्ररुकिजाय वीर्यच्यापरतो इंडिमेसूं पडिवालागिजाय पथरीको आजारहीय नेत्रकाविकारहोय ९ अभ्रभूषकारो किवाकाउ दावर्त्तकोलक्षएालिष्यते तंद्राहोय हामांमेफूटली होय अरुचि होय विनाश्रमहीश्रमहोय सरीरक्षीणपरिजाय दृष्टिमंदहोजाय १. प्रथतिसकारोकिवा काउदावर्त्तको लक्षणलिष्यते कं उमूंदोसुकै थोडासु हिया पीडहोय ११ प्रथस्वासकारोकि वाकाउदावर्त्तको लक्षणलिष्यते दौडतांसास होयद्याचे तीने रोकेजीकेयेलक्षणहोय हियोइये मोहघणो होत्या पेटमें गाला कोरोगहोय १२ अथनींदकारोकिवा का उदावर्त्तकोलक्षण लिष्यते जंभाईपणीच्या अंगामैकूटणीहोय अधिभारही मांद्योभास्योहोय तंद्राहोय १३ अथउदावर्त्तकी उत्पत्तिलिष्य ते कोठामैंरहतोजोवाय सोलुषाकसायला कडवाभोजनासूंकु For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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