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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०९ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग पारोटका १ भर सोध्योसींगी मुहरोटक ५ पाडेयांसारांनेमिहीयां टि अरपारागंधककी कजलीकरिईकजली मैयांसाराने मिलायपा छैयांकोएकजीबकरियां की गोली छोटाबोरप्रमाणबांधे गोली लबंगकाकाटासूंलेतौ सूलततकालदूरिहोया इतिसंषवटीरसः अथवा सीपांकीभस्मटंक २॥ नातापासूंपीवैतो भोजनकरा पाडेसलचालै सोहूरिहोय' अथवा सोध्योपारोटक १ सोधी गंधकटंक सोध्योसींगी मुहरोटक । कालीमिरचिटका १| पीप 'लिङका २|| काकडासींगीट का २ सेकी हींगटक २) पांचू लूटका ८। मामली कोषाररका नजंमीरीकारसमें बुलाई संघकीभस्मट का नभर प्रथमपेोरागंधककी कजली करे पाछैईकजलीमैयेसा शोषदिमिलाय नींबूकारसमैयेकजीवकरै पाछेकीगोलीट क१। प्रमागगोली बांधे पाछैगोली १ जल सूंले तौसूलने वजी एनिउदर कारोगनैं मंदाग्निनें दूरिकरे इतिसूलदावानल रसः येसाराजतनसर्वसंग्रहेग्रंथमे प्रथपसवाडा कीसूलकोजतनलिष्यते सांगीमोहरो हरताल हांग राई नौसादर मेएासिल लसण बचएलीयो यांनेबरावरिले यांने मिहीनांदिगरमपाणीसूंडे गरमसुहावतो लेपकरेती पसवा डाकीसूलजाय इतिसूलरोग - प्रकार की अरपरिणामसू लभ्प्रन्नद्रवजरत्पत्त का जननसंपूर्णम् इति श्रीमन्महा राजाधिराजमहाराजराजराजेंद्रश्री सवाईप्रतापसिंहजीविरचितेअमृतसागरनामग्रंथे वानरक्तसूल परिणा मसूल अन्नद्रव जरपित्तयांकी उत्पत्तिलक्षणजनननि रूपणनाम दशमः स्तरंगः समाप्तः १० अथउदावर्त्त For Private and Personal Use Only १०
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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