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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९९ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग १ नहीं घटाईषायनहीं मांसदहीषायनहीं मैथुनकरैनहीं मार्गचा लैनहीं तावडेरनहीं बुषायनहीं नेलषायन हीं इति किसोर गूगलसंपूर्णम् अथवा भिलावाभास्याजल में डूविजाय सा सेर २ ले त्यांकामूंदाघोरसूंघसिसेर १६, पाणी घालावे हैं मटतापांणी में गिलवेसेर ९२ कूटिनांषै नदिईयाणीको चतुर्थोस रहे नदिईमेयेऔषदिकूटिनांषे सोलिबूंं गिलवैकथा वाच चीटंक २॥ नींबकी छालिटंक २॥ हरडेकी छालिक २॥ वलाटंक २३।। हलदटंक २|| नागरमोथोडंक सातजटंक २॥ इलायचीटंक ५ गोषरूटंक ५ कन्नूरटंक ५ रक्तचंदनटंक ५ यांनेमिहीनांटिइभि लावासमेत एकजीवकरि अमृतवानमेंरा पाछैईनेटंक ५ज लसूंरोजीनांजलसूंलेतौ वातरक्तनै कोटनें ववासीर विसर्पने पांवने वायका सर्वविकारानें रुधिरकासर्वविकारानें इतनांरो गांनैयोइरिकरैछे ईकोषावावालोइतनी वस्त करैनहीं वेदकरे नहीं तावडेरनहीं अग्निकनेरहेनहीं घटाईपायनहीं मांस षायनहीं तेललगावैनहीं मार्गचालनहीं इतिअमृतभल्लान कावलेहसंपूर्णम् अथवा अलसीनेदूधर्मैपीस अथवा डकी अरंडोलीनेंदूधर्मेवारि हाथपगांकैलेपकरे तो वातरक्तजा या अथवा गौरीसर राल मोममजीठ येबराबरिले खानेतेल मैंषकाचे पाछेंईकोमर्दन करेंतो वातरक्तजाय १ अथवा भरंड कीजड गिलचे अरडूसो यांकोकाटोकरि गूगलमासा ४ परं उकोतेलटंक 20 नांषिपीवनों वातरक्तनें मूर्छाने मथवायनें सास नैं फोडानैं यांनेइरिकरैछे येवैद्यरहस्यमैछे अथवा हरताल कापत्र चोपालेत्यांनेसाठीकारसमेंदिन २ परलकरे पाछेवेनें गाढो For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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