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१९६, अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग १० अथवातरक्तकोपूर्वरुपलिष्यते पसेवयगांधावै अथवाया नहीं सरीरकालोपडिजाय शरीरकास्पर्शकोग्यानहोयनहींथो डीसीचोटमेंपीडघगीहोय संधिसंधिसिथलहोयजाय पालस घोंपावै सशरमैफणस्यांहोययावे गोरा,जांयांमें कारमें हाथ पगांकीसंधिमैपीडाहोय सरीरभास्योरहैसनोहोजाय सरीरमैं दाहहोय सरीरकोरंगोरसोहोजाय सरीरमैलालचागपडिजा ययेलक्षणहोयनदिजाणिजेवातरक्तहोसी अथवायकाम धिककोवातरक्तकोलक्षालिष्यते पगामैसलादिकघी होय अरफरके अरसोजोहोय परलूषाहोय अरकालाहोय अरचोवी नाड्यामें अरांगुलीकासंध्यामेसंकोचहोय सरीरज कडवंधहोयसरीरकांपेअरसरीरसंनोसोदीसै येलक्षणाईमैहो यतोचायकाअधिककोवातरक्तजाणिजे अथरक्ताधिवातर तकोलक्षालिष्यतेजोमैंसोजोहोय पीडधणीहोयललायी नेलीयांहोयजीचिमचिमीहोयषुजालिहोय येजीमेलक्षराहो यतीनैरक्ताधीकवातरक्तकहिजे अथपित्ताधिकवातरक्तको लक्षरालिष्यतेजीमैंदाहहोय मोहहोय पसेवनानै मूर्खाहोयम दहोय तिसहोय स्पर्शसद्योजायनहीं पीडाहोय सोजोहोय पकि जाय गरमपरगोहोय येलक्षराजीमैं होयतीनेपित्ताधिकवातरक्त कहिजे अथकफाधिकवातरक्तकोलक्षगलिष्यतेसरीर मैंसलपडिजाय सरीरभास्योहोजाय सरीरसोजायसरीरचीक गोहोजा यसरीररंटोहोजाय सरीरमेंघुजालिया येलक्षणजी मेहायतानकफाधिकवातरक्तकहिजो अरयेसर्वलक्षराजीमैं होयत्तानेसन्निपातकोवातरक्तकहिजे अथवातरक्तहा
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