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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ अमृतसागर तथा प्रतापसागरतरंग - ९ होय अरथरत्तीमैपगमेलेनदिपीडहोय सातस्पर्शकंजारोनहींग ल्पोजायनहीं जांगिजांयकाठकोडैमांटूटीसीदीषे येलक्षण होयजीनमहायातव्याधिकहिजै इहींनउरूस्तंभकाहिजै अथर रूसंभकोसाध्यलक्षगलिष्यते उरुसंभवालारोगीकैदाह होय पीडाहोय अरसरीरकांपै ओउरूस्तंभामारजाया अथर रूस्तंभकोजतनलिष्यतेत्रिफला पापलामूल संठि काली मिरचि पीपलि यांकोमिहांचूर्णकरिटंकारोजीनांसहतकैसा थिलेतोरुरुस्तंभितरोगजाय१ अथवा सूहि पापति सिलाजी तगूगल येसारामासा ५गोमूत्रकेसाथिरोजानांपावतीउरुस्तं भजाय अथवा दसमूलकाकाटाकेसाधिगूगलषायतोउरु स्तंभजाय येमावपकासमैलिष्याछे अथवा मिलावारंव गिलटंकारिका देवदारुटंकाहरडेकीछालिटंक साटीकीजउदंकादसमूलरंकायांकोकाटोलेतौउरुस्तंभ जाय। अथवा गूगलटंक गोमूत्रकेसाथिदिन १५लैतोउरु स्तंभजाया अथवासहतस्यूंबंबाकीमारीयांनमिहावांटि यां कोमर्दनकरैतोउरुरतंभजाया अथवा वचकोचूटिंकसागर मपाएगी लेतौउरुस्तंभजाय अथवाउरुस्तंभवालोइतनीय स्तकरैनहीं लोहीकटावैनहीं वमनविरेचनकरेनहीं वस्तिकर्मक रैनहीं येसर्ववेयरहस्यमैछे अथवा षसकोरस अथवा नीबूकोरस गुडकैसाधि अथवा सहतकैसाथिपीवैतौउरुस्त भजायायोकासीनाथीपडितमैछै अथवाचव्य हरडेका छालि चित्रक देवदारु कलगचकाफूल सिरस्यू यांकोचूर्णकरि एंकशासहत लेतीउरूस्तंभजाया योसर्वसंग्रहमेछे छ For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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