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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७७ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग . गंध षटीकाजड वालकागिरि पाठल दोन्यूंकटेली गोषरूं गंगे रनिकीछालि नींबकालालि अरलू साटीकीजड पीप अरएयू ये सबओषदिटकादसदसभरिले अरपाणीसेर १५ ले नीमैयेगी षदिनांषि सनेसनैपचाय यांकोकाटोचतुर्थासरापे पाछैईमैति लांकोलसेर७४ नांष अरईमैसतावरीकोरससेर ४नांषे तेल {चौगुणोईमैगजकोडूधनांषे पीछेयांकूमधुरांच पका वै यांनैपचताहीईमेयैऔषदिनांषे कूठटका ११ इलायचीट काशरतचंदनटकारावचटकारा छउटका सिलाजीतटका। सीधौलाटकाश असगंधटकाराषरैंटीटकारारास्नाटका। सौंफटकाराइंद्रायणटकारासालपटिकारा पृष्टपर्णाटका रामांसपीटकाश उरपटिकारारास्नाटकारायसर्बबरा वारले ईमैनाषिमधुरांच पचावै सर्वरसवलिजाय तेल : मात्रआयरहै तवईकूउतारिछालि पीछैईनेलकोमर्दनकरै तो अथवाषायतो अथवा यांकोयस्तिकर्मकरैतौ इतनारो गजाय पक्षाघात हनुस्तंभमन्यास्तंभ गलग्रह बधिरपणों गतिभंग करियह गात्रसोम नष्टशुक्र विसमजर अंत्रवृद्धि गोसो सिरोयह पार्श्वसूल ग्रध्रसीपायकासरोग ईनाराय पातेल डूरिहोयछै इतिनारायगतेलम् अथजोग राजगूगलकीविथिलिष्यते मूटि पीपलि चव्य पीपला मूल चित्रक सेकाहींग अजमोद सिरस्यूं दोन्यूंजीरा संभालू इंजय पाट वायविडंग गजपीपलि कुटकी अतीस भाउंगी वच मूर्चा येसबओषदिमासाच्यारियारिले अरविफलास गलीओपदनासंदूपीले पाछेइनसवोषधानेमिहीवांटि For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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