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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७५ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग ८ रमैंफोडाकरैऽअथहाडनमैंरहतोजोकुपितवायतीको ल क्षणलिष्यते संधिसंधिमैं पीडाहोय मांसवलिजाय नींदयावे नहीं रमज्जा में वायहाडकीसी नाईजांनिये ६ थवीरजमें प्राप्तिभयोजोवायतांकोलक्षणलिष्यते स्त्रीसंगकरैतौनी र्यततकालगिरिपर्डे कैपडेनहीं अरगर्भकूविगाडतोउपजावै ७ अथइनसवनकेजतनलिष्यते रसमेंवि गड्योजोवायतीकै तेलको मर्दनकरिये १ रक्तमेंविगड्योजोवाय तीकेसीतललेप सूं अथवाजुलावसूं अथवालोहीकेकटावेसांतिकरिये २ मां समेदमैंरहतोजोवायतीने जुलाबसूंसांतकरिये ४ हाडनमैंवि गड्योजोवायतीको चीकनीवस्तकेषावेसूं ४ अथवा लगावासूं सांनकीजिये ५ परमज्जामैगयोजोवायसोची कणी वस्तकेषा बालगावांच्याछ्योहोय ६ अथवा वीर्यमैनिगडेयोजोवाय सोपुष्टाईकाषदिषावासूंच्योहोय ७ अथकोष्टसैंपा सभयोजोवायतीको लक्षणलिष्यते उदरमैंरहतोजोडुष्ट वायसोमलमूत्रकूंरोकिदे पर वदको हियाको गोलाको बचा सीरकौ पसवाडाकेसूलको उपजावैरै - अथईकोजतन लिष्यते पाचनादिकनसूँ इकोजतनकीजे अथवा दूध पाजे अथयामासयमैंरहतोजोवायती कोलक्षणलिप्यते हियामैं पसवाडामैं नाभिमैं इनमेंपीडाहोय तिसलागे डकार घणीच्या विसूचिकाहोय षासहोय कंठमूंटोकिजाय सा सहोय प्रथईकोजननलिष्यते दीपनपाचन की औषदि दीजे लंघनकराजे वमनकराजे जुलावदीजें षावामें पुराणामूं गचावलदीजे अथवा रोहीस हरडेकीछालि कचूर पुहकरम् Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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