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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४३ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग होय रात्रिनेंएकलोफिरै पवित्ररहे येलक्षणहोयतोराक्षसला जाणिजे १३ प्रथब्रह्मराक्षसजींनैलाग्योहोयतीसूउप ज्योजोउन्मादतीकोलक्षणलिप्यते देवता ब्रम्हा गुरु याँसूं बैरराषे वेदर वेदांत कोजाणिवावालोयापहोजाय अराप कासरीरनै पापही पीडाकरै परमारैनहीं येलक्षणहोयतौ ब्रम्ह राक्षसलाग्येोजाणिजे १४ अथपिसाचजीनैलाग्येोहोयती सूंउपज्योजोउन्मादतीकोलक्षणलिष्यते उँचाहाथरापियो करै सरीरहसहोजाय क्यूंकोक्यूंमिथ्या वकै सरीरमेंडुर्गंधियावे अपवित्रर है अतिचंचलहोजाय घणौषायउद्यानमैमनरहे भ्रम घणौ रोवै ये लक्षण होयतो पिसाचलाग्योजाणिजे १५ अथउ न्मादको साध्यलक्षणलिप्यते प्रषिफटीसीहोजाय मोल बोकरे मूंढेागाचोकरे नांदणी आवे पडिजाय कांपे येल क्षएगहोयतौष्यसाध्यजाणिजे परपून्यूने आजारपणो होयतो दे वतांकोदो सजाणिजे परसांग में कोईलागेतो असुरकोदोसजाणि जै भ्रमावसनें ये लक्षण होयतौपितरांकोदोसजाणिजे श्रानये लक्षणहोयतौगंधर्वकोदोसजाणिजे पडिवानैयोविकार होयतो जक्षकोदोसजाणिजे रात्रिनेयेलक्षणहोयनौराक्षस पिशांचाकोदोसालिजे अथयांसारांकाला गिवा की तरहलिष्य ते जैसे मनुष्यादिकां कोमतिबिंबदर्पणादिकांमेधसिजाय छै तैसेंहाँप्रालीमानमेंसी तउष्गंध सिजाय जैसे प्रातसीकाचमे सूर्यको किरणधसिकरित्र्यग्निनउपजायदे तैसेंही मनुष्यादिका कासरीरमें भूतप्रेतादिकधसिजाय सरदीषैनहीं चिन्हासू जाएयां पडे अथउन्मादादिलेरयांसारांकाजथाजोग्पज For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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