SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२९ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग ७ पाछेमनबहवापालाजोनसायानैवेदोषमोहितकरैतदिमन स्यकोचित्तविगडिजायथिररहेनहींईनैहोलदिलकहेछ अथ उन्मादकोपूर्वरूपलिष्यते बुदिथिररहेनहीं सरीरको पराक मजातोरहै दृष्टिथिररहैनहींधारजजातोरहै पाछीतरैबोलेन होहदोसनोहोयजाय येलक्षणहोयतौजाणिजेपुरषकेउन्मा दहोसीअथवायकाउन्मादकोलक्षरालिष्यते लषीवस्त कापरउंदायस्तकाघाषावा घणाजुलाबकालेवासंधान काषाणपणांसं वायवधै नदियोवायहियानैविगाडै अरबुद्धि कोचरस्पराकोतनकालनासकरे तादमनुस्यहेसोषिनाकार यही हसेगावैनाचे योहाथ{मूदानैवानराकोसीनाईकरवाला गिजाय अररोषालागीजाय सरीरकोरअरकालोलालहोजाय परभोजनपयांपळुयोरोगवधेयेलक्षराहोयनौवायकोउन्माद जाणिजे अथपित्तकाउन्मादकोलक्षणलिष्यतेजारी मैंभोजनकरुणांकडवोषाटो गरम यांभोजन पित्तथैतदिम नुष्यकाटदाको पित्तहसोविगडिउन्मादनैंकरै तदिओपुरसकहींकी वातनैमानेनहीं अरनांगोहोजाय मारबालागिजाय रोलवालाग जाय बैंकोसरीरतानोहोजाय सीतलवस्तकावांछाराषे अरसरी रवानामनिपालीहोजाय येलक्षसहोयतौपित्तकोउन्मादजाणि जे अथकफकाउन्मादकोलक्षरालिष्यते भूषमंदहोय अ रजामघोषाय नदिपुरसकेकामकारवामैनालसघगोआचे नदिकैपित्तहेसोकफ मिलि परमर्मस्थानानैवधा नदिपुरस कीबुद्धिको अरस्मरणकोनांसकरै पाछे-काचित्तनैविगाडै पुर सनउन्मनकरिअरोपुरसकमबोल भूषजातीरहे स्त्रियाप्या For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy