SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२९ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग लोहाकीमूर्छाको लक्षणलिप्यते मनुष्यनै लोही की दुर्गधिश्राय पृथ्वीपरत्र्याकासत्र्यंधकाररूपहीदीसै अरसर्वत्रलोही की वासया वैनिश्चलदृष्टिहोय सासच्याछीतरे श्रावैनहीं पाछेमूर्द्धायाचे तदि बेंकैलोही की मूर्छाजाणिजे ५ इसीतरहचंपाकापुष्पादिकांकासूं घिवासूंमूर्छाहोयछै योईकोसुभावछै प्रथमद्यकी मूर्छाकोल क्षणलिप्यते घणोमद्यपीयांमनुष्यबकैघणे अरसोयजाय पा संग्याजाती रहे परपृथ्वी पर हाथ पगपटकै जेठाता ईवेंमयको सरीरमें अमलरहे सरीरकांपै सोवैघणो तिसलागे येलक्षणहोय तदिमद्यकी मूर्छाजाणिजे ५ प्रथविसकी मूर्छाकोलक्षणलिप्य ते विसषायो होयजी कोसरीरकांपै परनोंदणीप्रावै निसपली लागे संज्ञाजातीरहै मूंटोकालोहोजाय प्रतीसारलागजाय भोज नमैंरुचिजातीरहै येजीमेलक्षण होयतदिविसषायाकीमूर्छाजा णिजे ६ अरतमोगुणधरपित्तकात्र्ग्राधिकापणाने मूर्छाहोयछे अथभ्रमकोलक्षणलिष्यते पररजोगुणचर वायपित्तमिलै तदिभ्रमहॊय प्रथनंद्राकोलक्षणलिष्यते तमोगुण र वा यकफ मिलैतदितंद्राजाणिजे श्राधानेत्रषुल्यारहे अथनिद्राको लक्षएालिष्यते तमोगुण अरकफमिलै तदिवेपुरषकोमनषेद कुंप्राप्तिहोय अरदसूइंद्रीयांभीषेध कूंप्राप्तिहोय तदिवेइंडियां हसोच्प्रापकाविसयनेग्रहणकरैनहीं नदिपुरससोवै प्रथस न्यासकोलक्षणलिष्यते हिया रहताजोवायपित्तकफयेदो सूं वाली देहमन की चेष्टाकूंग्रहाकरिनिर्बलपुरषकुंकाष्टकी शीनांईमूर्छितकरेछे तीनेसन्यासकहिजे प्रथमूर्छाकोजत नलिष्यते तिलांदिकांका सेकसंवायकी मूर्छाजाय १ अथपित्त For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy