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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग ६ सूं मोहसूं अतिलोभसूं डरपवासूं मनपकड्येोजाय इसाभोजनसं अरबुरीत कारूपकादेषावासूं बुरीतरैकागंधकासूं घिवासूं, तदिम नुष्यांकै वायपित्तकफहसोम्प्ररुचिनामरोगनैपेदाकरै छै सोवापरु चिपांच प्रकारकी वायकी १ पित्तकी २ कफकी ३ सन्निपातकी ४ सो कादिक्रकी ५ अथवायकी अरुचिको लक्षएालिष्यते पाटोक सायलोमूंडोहोय हियामैसूलचालै रुचिजाती रहे भोजनसूं तौबा यकीन्प्ररुचिजाएणजे १ अथपित्तकी रुचिकोलक्षएालिष्य ते कडवो पाटो गरम विरस सलूलोजीको मूंडोहोय भरसरीरमें दाहहोय मुषसोंस होयतोषित्तकीम रुचिजालीजे २ अथकफकी अरुचिको लक्षणलिष्यते मूंटोमारोहोय अरचिपचिपोहोय स शरभारसोहोय बंधकुष्टहोय लालपडे सरीरमैंजा गांजागांपीडाहो य भोजनमै अरुचि होयतों कफकीन्प्ररुचिजालीजे ३ येसर्वमिले तदिसन्निपातकीरुचिजाणिजे ४ प्रथसोकादिकसूपजीजो प्ररुचित्तीको लक्षगलिष्यते पेटमै भूषलागेमूढांमेचलै नहीं ५. यासोकादिककीपरुचिजाणिजे अथारुचिकोस्वरूपलिष्य ते लूटार्मेंअन्नकोगासलेनदिपुरसनै क्यूंभास्वादयावे नहीं तदिजा पिजे कैरुनिकोरोगकै अथभुक्तइसकोलक्षणलिष्यते भो जनकोचिंनवनकस्यैौ अथवा भोजननैदेष्योतदियो-भोजनरुचै नहीं तदिवेकेभुक्तसनामकहजे प्रथप्ररुचिरोगकोजतन लिष्यते भोजनपहली सीधोलूगलगाय श्रादोषायतो अरुचिजाय भुषलागे कंठजीभसुरहोजाय परसहतत्र्यादाकोरस मिलायपीचे तो रुचि सासषासजाय २ अथवा पकीप्रामिली कोसर वतमि श्रीघालिकरे ती मैं इलायचीलवंग भीमसेनी कपूर को प्रतिवासदे For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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