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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० ५ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग भर येमिहींपांटिवेंचासणी मैंनांषे परसहसेरनांचे पाछे ईकोयेकजीवकरिटका १| भर रोजी नांषाय तो सर्वप्रकार की बासीजा १- याभृगुहरीतकी छे अथकव्यालीको प्रचलेहलिष्यते कट्यालीसेर ९४ कोकाटाकर ईकाटामै सेर ३४ मिश्री की चासणीकरि ईमेयेषदिनांषे सोलिपूंचं गिलवैटका १ काकासगीटका १ चव्यटका१।चित्रकटका ११ नागरमोथोटका १ सूंठटका १) पीपलि टका १| धमासोरका १| भाडंगीट का १श कचूर का ११ यानैमिहीवांटि वेचासणी मैंना ईमेसेर ७१ सहतनांषै बंसलोचनपाव ॥ ईमैंनाषेपा छैईनेटकाभररोजीनांषायती सरबप्रकार कोषासजाय १९ इति कट्यालीको प्रबलेहसंपूरणम् येभावप्रकासमेलिष्यो अथ बा अरसाकाकाटा सहननांषिपीवेनेोषासीजाय २० अथवा प्राककापान मैासिल सूठि कालीमिरचि पीपल येबराबरिले तीकीगुडावणाचे बहुकामैषीवैतोषासीनिवैजाय २१ अथवा पा रो सोध्योगंधक हाल सोध्यो सांग मोहरी सूंठ कालीभिरचि पीप लि सेक्योसुहागो येबराबरिले पाछेपारागंधककी कजलीकरे पाढे येोषदिमिहीनांटिकजली मिलावे पाछै कजलीने भागराका रसमैदिन परलकरे पाछे बिजोराकारसदिन ३ परलकरै पाछे की गोली रतीच्याधकीकरै पाउँगोली १ रोजीनांदिन १० षायतो बासी मैं क्षयानें संग्रहणीनें सन्निपात मृगी यानेयोरसइरिकरे २२ इति आनंदभैरवरससंपूर्णम् इतिषासरोगकी उत्पत्तिलक्षण जननसंपूरणम् अथहिचकी रोग की उत्पत्तिलक्षणजतन लिष्यते गरमवस्त वायलवस्त भारीवस्त लूषी सीलीने दिलेर जोवस्तती कापावा मुषमैरजकाजावासे पेद काकरि वासें मार्ग For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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