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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ श्राकृति-निदान बादीपन एक साथ इकट्ठे हो जाते हैं और प्रत्येक प्रकारके बादीपनके परिणाम अपनी अपनी मात्रा के अनुसार एक साथ प्रकट होते हैं । प्रायः सामने और बगलवाला बादीपन एकसाथ ( तस्वीर नं ६, १०, १८, और १६ १, बहुत अकसर बगल तथा पीठवाला बादीपन एक साथ ( तस्वीर नं० २२ और २५ और कभी कभी सामने तथा पीठवाला बादीपन एक साथ प्रकट होता है। साधारणतः जिनके शरीर के भिन्न-भिन्न भागों में उनकी दशा अधिकतर शोचनीय होती है । बादोपनवाते ( तस्वीर नं० २६ से लैकर ३४ तक और तस्वीर नं ३६ तथा ४० ), लोग अशक्त, धैर्यहोन, चञ्चल, भक्की और असन्तुष्ट रहते हैं । इन्हें कोई तीव्र रोग हो जानेपर बड़ा खटका रहता है । तीव्र रोग होनेकी सम्भावना बराबर रहती है। उनका बदन खूत्र मोटा ताजा और भरा रहता है। इसलिये उनकी तन्दुरुस्ती अव्वल दरजेकी गिनी जाती है, उनमें बाह्यरूपसे ज्वर कठिनता दिखलाई पड़ता है, इसलिये उनकी मृत्यु एकाएक हो जाने पर यह लोग श्राश्चर्य करते हैं कि ऐसा स्वस्थ मनुष्य एकाएक किस तरह मर गया । जबतक शरीर फूला रहता है ( तस्वीर नं) तबतक च होनेकी आशा भी रहती है । पर शरीर के सूखते और पचकते ही दशा पहले से खराब हो जाती है । उस समय किसी उपायसे काम नहीं चल सकता | चाहे कितनी ही फिक्र और कितना ही इलाज For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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