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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राकृति-निदान क्या है। प्रकारका मल रहनेसे ही बादीपन पैदा होता है ! तभी उसकी भाकृतिमें अन्तर पड़ जाता है। अब प्रश्न यह है कि यह विजातीय द्रव्य जो शरीरका कोई अङ्ग नहीं है और इसलिये जिसका नाम मल या विष होना चाहिये -मनुष्य शरीर में किस तरह प्रवेश करता है ? यह द्रव्य उसी तरह शरीरके अन्दर प्रवेश करता है जिस तरह कोई दूसरा द्रव्य बदनके अन्दर जा पहुँचता है। पहले पहल तो विजातीय द्रव्य शरीरके मलमूत्रवाहक इन्द्रियों के पासके अङ्गों में जमा होता है। यह विजातीय द्रव्य कुछ कालतक तो छोटे छोटे रोगों द्वारा जैसे कि दस्तकी बीमारी-अत्यन्त पसीना और बहुत ज्यादा पेशाबके द्वारा शायद निकल सकता है। इस तरहसे कभी-कभी तो शरीरके अन्दर बहुत ज्यादा जमा हुआ सदा पदार्थ भी निकल जाता है तथापि साधारणतःकुछ न कुछ गंदा पदार्थ शरीरमें रह ही जाता है या नया पढ़ार्थ फिरसे जमा हो जाता है। शरीरके जिन भागों में विजातीय द्रव्य जमा रहता है वहाँ बड़ी तेज गर्मी पैदा होती है । उसी गर्मी से दस्तकी बदौलत विजातीय द्रव्यमें भी एक तरहका परिवर्तन हो जाता है। गर्मी पैदा होनेसे शरीरके अन्दर एक तरहका खमीर या जोश उठता है और उसी खमीर या जोशके जरिये से एक तरहकी गैस या हवा पैदा होती है। यह हवा कुछ तो बदनके चमड़ेके सूराखोंके द्वारा बाहर निकलती है और कुछ शरीरके भीतर ही ठोस बनकर जम जाती है। यही जमा हुआ पदार्थ शरीर में बादीपन पैदा करता है। विजातीय द्रव्य कई ओर For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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