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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान बीमारीसे मनुष्यकी चेष्टा भी बदल जाती है, पर वह तबतक नहीं दिखलाई पड़ सकती जबतक कि मनुष्यके शरीरमें अत्यधिक परिवर्तन न हो जाय । स्थूल और भारी शरीरकी क्रिया स्वस्थ शरीरकी अपेक्षा भिन्न प्रकारकी होती है। अतएव शरीरकी चेष्टा और कार्यसे भी निश्चय हो सकता है कि भामुक मनुष्य स्वस्थ है या नहीं! श्राकृति-निदानमें शीरकी बनावट, चेष्टा, रङ्गत और गतिकी ओर ध्यान दिया जाता है। पर पहले हमें स्वस्थ मनुष्यकी पहिचान मालूम होनी चाहिये क्योंकि इसके बिना हम पता नहीं लगा सकते कि किस मनुष्यके शरीरमें क्या रोग है। स्वस्थ मनुष्य स्वस्थ मनुष्यका वर्णन करना सहज नहीं है, क्योंकि आजकल पूर्ण स्वस्थ मनुष्य मुश्किलसे मिलते हैं। वनमें बीमार पशु बहुत ही कम पाये जाते हैं। इसलिये उनकी स्वाभाविक आकृत का पता लगाना सइज है पर सभ्य मनुष्यकी दशा इस. के विपरीत है। क्रम-क्रमसे बहुत खोज और परिश्रमके बाद मैं इस बात का चित्र खींचने में समर्थ हुआ कि मनुष्यका शरीर स्वाभाविक रूपसे कैसा होना चाहिये । वास्तविक स्वास्थ्यकी दशाका अनुमान मैंने पहले पहल शरीरके कामोंसे लगाया, क्योंकि जो शरीर स्वस्थ होगा वह अपने सब काम उचित रीतिसे किसी कठिनाई और कष्टके बिना पूरा करेगा। उसे अपने काममें किसी कृत्रिम सहायता तथा उत्तेजनाकी आवश्यकता न For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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