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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १६ ] पेथिक डाक्टरको कहीं-कहीं सफलता हो जाती है तो इसका कारण यह है कि वह आम तौरपर कुछ शरीरके लिये भी कोई न कोई इलाज तजबीज करता है। ज्यादातर हालतों में तो सिर्फ ऊपरी फायदा होता है अर्थात् बीमारीके लक्षण इलाज करनेसे दब जाते हैं, जिससे लोग समझते हैं कि रोग अच्छा हो गया। उदाहरणके लिये पारसे कोई गेग वास्तविक रूपसे दूर नहीं हो सकता, बल्कि उससे हमेशा और भी ज्यादा खराब हालत हो जाती है। पर इसके द्वारा कुछ जननेन्द्रिय संबन्धी बीमारियोंके लक्षण दब जा सकते हैं । जो रोगी पारेके प्रयोगसे चंगा किया जाय वह अभागा छोड़कर और क्या कहा जा सकता है ! पारेकी तरह अफीमका सत्त, आयोडीन, ब्रोमीन, कुनैन, संखिया इत्यादिका भी बड़ा बुरा असर होता है। इस विषय पर हमारे नवीन चिकित्साप्रणालीके बारहवें संस्करणमें विस्तारके साथ लिखा गया है। तीसरी बात यह है कि डाक्टर लोग रोगका निदान तभी कर सकते हैं जब बीमारी खूब बढ़ जाती है; क्योंकि शुरूमें नहीं पहिचान सकते। वे यह भी निश्चयके साथ नहीं कह सकते कि आगे बीमारी कौन सा रास्ता अख्तियार करनेवाली है। पर रोगीके लाभके लिये यह बहुत ही जरूरी है कि बीमारी शुरूवाली हालतमें ही पहचान ली जाय और यह फौरन बतला दिया जाय कि भागे बीमारो बढ़नेवाली है या नहीं। अगर बीमारीकी हालत ठीक समयमें ही मालूम For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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